करीब 100 फीट ऊंचे इस पर्वत की चोटी पर स्थित है सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर, जिसे देश के प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक माना जाता है. यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास प्रेमियों के लिए भी एक अनमोल धरोहर है. सालों भर यहां भक्त जल अर्पित करने के लिए पहुंचते हैं.
अशोक काल के शिलालेख है मौजूद
इतना ही नहीं, वाणावर पर्वत के शिलाखंडों पर सम्राट अशोक के काल के शिलालेख आज भी मौजूद हैं, जो उस युग की सांस्कृतिक विरासत की कहानी बयां करते हैं. इन शिलालेखों को देखकर इतिहासकारों और पर्यटकों को मगध साम्राज्य की झलक मिलती है.
प्राचीन गुफाओं का अद्भुत नजारा
जहानाबाद की बराबर पहाड़ियों में कुल सात प्राचीन गुफाएं हैं, जिनमें चार बराबर पर्वत पर और तीन नागार्जुन की पहाड़ियों में स्थित हैं. इन गुफाओं को हजारों साल पहले बड़ी बारीकी से तराशा गया था. यहां के कई गुफाओं की दीवारें इतनी चिकनी हैं कि आज की टाइल्स भी फीकी लगे.
राजा जरासंध से जुड़ा है सिद्धनाथ मंदिर
बाबा सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में, गुप्त काल के दौरान हुआ था. मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर को राजगीर के प्रसिद्ध राजा जरासंध ने बनवाया था. कहा जाता है कि मंदिर से एक गुप्त रास्ता राजगीर किले तक जाता था. राजा इसी रास्ते से मंदिर में पूजा करने आते थे.
कैसे पहुंचें वाणावर?
पटना से वाणावर सड़क मार्ग के ज़रिए लगभग दो से तीन घंटे में पहुंचा जा सकता है. इसके लिए पटना-गया नेशनल हाईवे (NH-83) से मखदुमपुर तक जाएं. यहां जमुने नदी का पुल पार करते ही एक सड़क पूरब दिशा में जाती है, जो सीधे वाणावर तक पहुंचती है. इसके अलावा अगर आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं तो बराबर हाल्ट स्टेशन पर उतरें. वहां से सवारी गाड़ियों की मदद से आसानी से वाणावर पहुंचा जा सकता है.
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