COVID-19 : भारतीय मूल के अमेरिकी दंपति बिहार निवासी देवेश और रांची की डॉ कुमुद ने बनाया 100 डॉलर से कम मूल्य के वेंटिलेटर

वाशिंगटन / पटना : भारतीय मूल के अमेरिकी दंपति ने किफायती एवं वहनीय आपात वेंटिलेटर विकसित किया है. कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान पर्याप्त वेंटिलेटर के अभाव की सूचना मिलने पर जॉर्जिया टेक जॉर्ज डब्ल्यू वुडरफ स्कूल ऑफ मेकैनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एवं सहायक प्रमुख देवेश रंजन और अटलांटा में फिजिशियन उनकी पत्नी कुमुद रंजन ने महज तीन हफ्ते के भीतर आपात वेंटिलेटर विकसित किया है. यह जल्द ही उत्पादन स्तर तक पहुंच जायेगा. भारत तथा विकासशील देशों में यह काफी कम कीमत पर उपलब्ध होगा. इससे कोविड-19 के मरीजों के इलाज में चिकित्सिकों को मदद मिल सकेगी.

By Kaushal Kishor | May 29, 2020 1:55 PM
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वाशिंगटन / पटना : भारतीय मूल के अमेरिकी दंपति ने किफायती एवं वहनीय आपात वेंटिलेटर विकसित किया है. कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान पर्याप्त वेंटिलेटर के अभाव की सूचना मिलने पर जॉर्जिया टेक जॉर्ज डब्ल्यू वुडरफ स्कूल ऑफ मेकैनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एवं सहायक प्रमुख देवेश रंजन और अटलांटा में फिजिशियन उनकी पत्नी कुमुद रंजन ने महज तीन हफ्ते के भीतर आपात वेंटिलेटर विकसित किया है. यह जल्द ही उत्पादन स्तर तक पहुंच जायेगा. भारत तथा विकासशील देशों में यह काफी कम कीमत पर उपलब्ध होगा. इससे कोविड-19 के मरीजों के इलाज में चिकित्सिकों को मदद मिल सकेगी.

देवेश का कहना है कि इस वेंटिलेटर के अविष्कार में उनकी डॉक्टर पत्नी का साथ मिला. डॉ कुमुदा का कहना है कि आज दुनिया में वेंटिलेटर की काफी कमी है. दुनिया में लाखों लोग कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. लाखों ऐसे संक्रमित हैं, जिन्हें अगर समय पर वेंटिलेटर मुहैया हो जाये, तो उनकी जान बच सकती है. इस उपकरण को बनाना इसीलिए बहुत जरूरी था.

वहीं, प्रोफेसर देवेश रंजन ने न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताया, ”अगर आप बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करते हैं, तो यह 100 डॉलर से कम कीमत पर तैयार किया जा सकता है. अगर निर्माता इसकी कीमत 500 डॉलर भी रखते हैं, तो उनके पास बाजार से पर्याप्त लाभ कमाने का अवसर होगा.” साथ ही उन्होंने बताया कि इस प्रकार के वेंटिलेटर की अमेरिका में औसत कीमत करीब 10,000 डॉलर रुपये है. हालांकि, रंजन ने स्पष्ट किया कि उनके द्वारा विकसित वेंटिलेटर आईसीयू वेंटिलेटर नहीं है, जो अधिक परिष्कृत होता है. उसकी कीमत भी अधिक होती है.

देवेश का कहना है कि ‘ओपन-एयरवेंटजीटी’ वेंटिलेटर सांस संबंधी बीमारी से निबटने के लिए विकसित किया गया है, जो कोविड-19 मरीजों में एक आम लक्षण है. इससे उनके फेफड़े अकड़ जाते हैं और उनको सांस लेने के लिए वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत होती है. जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विकसित इस वेंटिलेटर में इलेक्ट्रॉनिक सेंसर और कंप्यूटर कंट्रोल का इस्तेमाल किया गया है, जो महत्वपूर्ण क्लिनिकिल मानकों जैसे सांस चलने की गति, प्रत्येक चक्र में फेफड़ों में आने-जानेवाली वायु, सांस लेना-छोड़ना और फेफड़ों पर दबाव को देखते हैं.

बिहार के नालंदा जिले के बेन प्रखंड के बड़की आट गांव में जन्मे देवेश रंजन के पिता रमेशचंद्र सिंचाई विभाग के अधिकारी रह चुके हैं. देवेश रंजन की प्रारंभिक शिक्षा पटना के ज्ञान निकेतन से हुई है. इसके बाद उन्होंने पटना साइंस कॉलेज से प्लस टू किया. देवेश ने बिहार इंजीनियरिंग की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद अपने सपनों को उड़ान देने के लिए तमिलनाडु के त्रिची के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से बैचलर डिग्री हासिल की. यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मेडिसन से मास्टर्स और पीएचडी की. उसके बाद जॉर्जिया यूनिवर्सिटी पहुंच गये. हालांकि, सोशल मीडिया फेसबुक में उन्होंने खुद को पटना का बताया है. वहीं, उनकी पत्नी कुमुद का जन्म बेंगलुरु में हुआ. कुमुद जब छठी कक्षा में थी, तभी अपने माता-पिता के साथ रांची से अमेरिका चली गयी थी. न्यूजर्सी में मेडिकल ट्रेनिंग लेने के बाद फिजिशियन हो गयी.

जॉर्जिया टेक के जॉर्ज डब्ल्यू वुड्रूफ स्कूल ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग में प्रोफेसर देवेश रंजन कहना है कि, ”हमारा प्राथमिक लक्ष्य चिकित्सकों को वेंटिलेटर की कार्यक्षमता के प्रमुख मापदंडों पर नियंत्रण देना है.” बोर्ड कंप्यूटर एक अनअटेंडेड तरीके से श्वसन को नियंत्रित करनेवाले सेटपॉइंट्स को बनाये रखने के लिए काम करता है. सेंसर और कंप्यूटर डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ के लिए अधिक नियंत्रण और वास्तविक समय की निगरानी प्रदान करते हैं.” ओपन-एयरवेंट जीटी के डिजाइन के दौरान दो अटलांटा अस्पतालों के विशेषज्ञों से चिकित्सकों की जरूरतों पर इनपुट मांगा था.” उन्होंने हमें जो बताया, उसके आधार पर हमने महसूस किया कि हमें मरीजों का इलाज करनेवाले लोगों की मदद करने के लिए सिस्टम पर अधिक नियंत्रण की आवश्यकता थी.” उन्होंने कहा, ”चिकित्सकों को यह देखने में सक्षम होना चाहिए कि रोगी की श्वसन क्रिया के साथ क्या हो रहा है और वेंटिलेटर को बदलती परिस्थितियों का जवाब देने में सक्षम होने की आवश्यकता है.”

देवेश रंजन की टीम ने एक वायवीय पिस्टन के संचालन को नियंत्रित करने के लिए दो सेंसर और एक रास्पबेरी पाई कंप्यूटर का उपयोग किया, जो रेससिटिटेटर बैग को संकुचित करता है. एक मानक कंप्यूटर मॉनीटर का उपयोग करते हुए डिवाइस का कंप्यूटर सांस लेने की गति, हवा की मात्रा और मरीजों के फेफड़ों पर लागू दबाव के बारे में जानकारी प्रदान करता है. सिस्टम को चेतावनी के लिए अनुमति देने के लिए डिजाइन किया गया है. रंजन की टीम में उनके अलावा पथिकोंडा, स्टीफन जॉन्सटन, डैन फ्राइज, कैमरन अहमद, बेंजामिन मूसि, चांग ह्योन लिम और प्रसून सुचंद्र, स्कूल ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक के छात्र शामिल थे.

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