बिहार में गहराता जल संकट! बरसात खत्म होते ही सूखने लगीं नदियां, मापने लायक भी नहीं बचा पानी

बिहार में जल संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है. जिन नदियों में कभी साल भर पानी रहता था, वे अब बारिश के बाद सूख कर रेतीली जमीन बन गई हैं. राज्य के 13 जिलों की 19 नदियों में अब पर्याप्त पानी भी नहीं बचा है. रोहतास जिले की काव, नवादा जिले की सकरी और नालंदा जिले की नोनई नदी सूख चुकी है. राज्य की इन नदियों की स्थिति पर पढ़िए पटना से कृष्ण कुमार, गोपालगंज से अवधेश कुमार राजन, सासाराम से अनुराग शरण और प्रभात खबर के अन्य संवाददाताओं की खास रिपोर्ट...

By Anand Shekhar | November 3, 2024 7:06 AM
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बिहार में अभी बारिश का मौसम खत्म ही हुआ, लेकिन राज्य की तीन नदियां अभी से ही सूख चुकी हैं, तो 19 नदियां सूखने की कगार पर हैं. इन 19 नदियों का पानी तेजी से घट रहा है. इसका असर यह हुआ कि गंगा, कोसी, सोन, बागमती, महानंदा और गंडक सहित अन्य बड़ी नदियों में रेत के मैदान नजर आने लगे हैं. यही वे नदियां हैं, जहां अगस्त और सितंबर महीने में बाढ़ से जानमाल का संकट उत्पन्न हो गया था. राज्य के 31 जिले के लोग बाढ़ से परेशान रहे. नाव ही आवागमन का साधन थीं. बहरहाल, हालत यह है कि सूखने की कगार पर पहुंचने वाली नदियों से सिंचाई करने वाले किसान फसलों की पटवन को लेकर अभी से परेशान होने लगे हैं. खासकर शहरी व कस्बाई इलाकों की नदियों में पानी अधिक मात्रा में कम हुआ है. यहां नदियां अतिक्रमण की भी शिकार हुई हैं. दूसरी तरफ विशेषज्ञ ग्राउंड वाटर लेवल के भी रिकॉर्ड स्तर तक घटने की आशंका जताने लगे हैं.

सुख चुकी हैं कई नदियां

रोहतास जिले में काव, नवादा जिले में सकरी और नालंदा जिले में नोनई नदियां सूख चुकी हैं. वहीं रोहतास, नवादा, नालंदा, सीतामढ़ी, कटिहार, गया और बांका जिले के बड़े इलाके की कई नदियाें का जलस्तर इतना नीचे जा चुका है कि उनमें मापने याेग्य पानी नहीं बचा है. यही नहीं रोहतास जिले के काव नदी में जुलाई में 103.38 मीटर पानी था. यह नदी अब पूरी तरह सूख चुकी है. रोहतास जिले की अवसाने नदी में एक अक्तूबर को 102 मीटर पानी था. एक महीने में ही स्थिति ऐसी हो गयी कि इस नदी में मापने योग्य पानी नहीं बचा. वहीं, अक्तूबर में नवादा की सकरी नदी में 80 मीटर पानी था, वहां भी पानी नहीं बचा है. इन नदियों के पानी से सिंचाई होती थी. अनुमान के अनुसार इन नदियों से 40 से 50 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होती थी. सकरी और काव नदी से जुड़ी सिंचाई परियोजनाएं भी हैं.

इन नदियों का हाल बेहाल

राज्य की 13 जिलों की 19 नदियों में पानी मापने योग्य भी नहीं बचा है. इनमें सारण जिले में गंडकी, गोपालगंज में झराही, मुजफ्फरपुर में नून, सीतामढ़ी में लखनदेई और मराहा, दरभंगा में जीवछ/कमला, कटिहार में कारी कोसी, किशनगंज में कंकई और पश्चिमी मेची, रोहतास में अवसाने, गया में मोरहर और जमुने, नालंदा में लोकाइन और मोहाने, नवादा में सकरी, तिलैया और धोबा, भागलपुर में कलखलिया, बांका में चिरगेरुआ नदियां शामिल हैं.

बाढ़ खत्म, रेत के टीले दिखने शुरू

इस बार नेपाल और पड़ोसी राज्यों में भीषण बारिश की वजह से कोसी, गंडक, सोन, फल्गू और उत्तरी काेयल नदियां उफना गयी थीं. साथ ही सभी नदियों ने दूसरा अधिकतम डिस्चार्ज का रिकॉर्ड बनाया. दूसरी तरफ गंगा नदी में इस बार का बाढ़ सामान्य रहा. अब हालात यह है कि इन दिनों इन सभी नदियों का पानी तेजी से घट रहा है. नदी के इलाके में अभी से रेत के टीले नजर आने लगे हैं.

इस साल कई नदियों ने तोड़ा था सबसे अधिक पानी डिस्चार्ज का रिकॉर्ड

कोसी नदी में सुपौल जिले के वीरपुर बराज से 1968 के बाद 29 सितंबर 2024 को सबसे अधिक छह लाख 61 हजार 295 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज किया गया था. वहीं, गंडक नदी में 2003 के बाद 28 सितंबर, 2024 को वाल्मीकिनगर बराज से सबसे अधिक डिस्चार्ज पांच लाख 62 हजार 500 क्यूसेक दर्ज किया गया था. इसी तरह इंद्रपुरी बराज से सोन नदी में 1975 के बाद सबसे अधिक डिस्चार्ज 18 सितंबर 2024 को पांच लाख 22 हजार 296 क्यूसेक दर्ज किया गया. यही हाल फल्गू नदी का भी रहा. उदेरास्थान बराज से फल्गू नदी में 2017 के बाद तीन अगस्त 2024 को सबसे अधिक डिस्चार्ज 68 हजार 628 क्यूसेक दर्ज किया गया. उत्तरी कोयल नदी में भी 2016 के बाद मोहम्मदगंज बराज से सबसे अधिक डिस्चार्ज 17 सितंबर 2024 को दो लाख 79 हजार 500 क्यूसेक दर्ज किया गया.

कैमूर पहाड़ी से निकलने वाली नदियों में काफी कम हो गया है पानी

कैमूर पहाड़ी के हरैया गांव से शुरू होकर सोन नदी के संगम तक करीब 20 किलोमीटर की दूरी अवसानी नदी तय करती है. बरसात के दिनों में तो इसकी धारा तेज होती है, पर बरसात खत्म होते ही सूखने लगती है. वर्तमान समय में नदी का पानी ठहर चुका है. अपने उद्गम से लेकर सोन नदी संगम स्थल के बीच में नदी की चौड़ाई कहीं 300 तो कहीं 700 मीटर तक है. इस बीच नदी में ठहरे पानी की गहराई कहीं 10, तो कहीं 25 फीट तक है.

कैमूर पहाड़ी से सटे हरैया गांव से होते मानू, तारडीह, सतगलिया, सुंदरगंज व अकबरपुर से गुजरने वाली अवसानी नदी में बरसात के बाद ठहरा हुआ पानी वसंत ऋतु तक इन गांवों के खेतों की सिंचाई और जानवरों के पीने के काम आता है. गर्मी शुरू होते ही नदी का पानी पूरी तरह सूख जाता है. नदी को वर्ष भर जिंदा रखने और इसके पानी के इस्तेमाल के लिए पहाड़ी से सोन के बीच चेक डैम बनाने की मांग होती है.

नदी की सफाई के लिए सरकार से योजना बनाने की मांग भी की गयी है. इधर, जिले में काव नदी जो कैमूर पहाड़ी के धुआंकुंड जलप्रपात से शुरू होकर बक्सर में गंगा में समाहित हो जाती है, उसका भी यही हाल है. बरसात के बाद कैमूर पहाड़ी से निकलने वाली दुर्गावती नदी का भी लगभग यही हाल होता है. वर्तमान में इन नदियों में पानी काफी कम हो गया है.

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बरसात व बाढ़ के बाद भी सारण की छोटी नदियों में नहीं है पानी

सारण जिले में इस वर्ष अगस्त व सितंबर महीने में भारी बारिश हुई थी. वहीं, सितंबर-अक्तूबर के बीच जिले के कई इलाकों में बाढ़ का पानी भी प्रवेश कर गया था. उसके बावजूद कई छोटी नदियां सूखने लगी हैं. इसका प्रमुख कारण है कि छोटी नदियों तक जो पानी पहुंचता है, उसका मार्ग जगह-जगह अवरुद्ध है. कई जगहों पर छोटी नदियों की उड़ाही नहीं करायी गयी है.

वहीं, नहर पर भी अतिक्रमण कर लिया गया है. ऐसे में अब ग्रामीण इलाकों के कई जलस्रोत पूरी तरह सूख चुके हैं. बनियापुर प्रखंड के कन्हौली संग्राम से सटे ढमाई नदी छोटी नदी के रूप में जानी जाती है. इसी साल इसकी उड़ाही करायी गयी थी. इससे कुछ पानी यहां पहुंचा है, लेकिन इस नदी से कनेक्ट जो भी नहर या छोटे पोखरे हैं. वहां तक पानी नहीं पहुंच सका है. कन्हौली संग्राम का सैकड़ों वर्ष पुराना पोखरा पूरी तरह सूख चुका है. इससे आसपास के ग्रामीण आगामी फसल की सिंचाई को लेकर चिंतित है.

वहीं जल स्तर पर भी इसका असर दिखेगा. तरैया में भी खदरा नदी पूरी तरह सूखी हुई है. इससे आसपास के जलस्तर पर इसका गंभीर असर पड़ेगा. तरैया बाजार में स्थित प्रमुख नहर में एक बूंद पानी नहीं है, क्योंकि गोपालगंज के रास्ते गंडक नदी का पानी हर साल नहर को भर देता था. लेकिन, इस बार बीच-बीच में कई जगह उड़ाही नहीं होने से यहां तक पानी नहीं पहुंच सका. डीएम अमन समीर ने 15 दिन पहले ही इस संदर्भ में एक बैठक की थी और सभी नहर व छोटी नदियों तक पानी पहुंचे इसे लेकर योजनाबद्ध तरीके से नहरों के पास से अतिक्रमण हटाने व जलस्रोतों को मेंटेन करते हुए उड़ाही कराने का निर्देश भी दिया था.

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गंडक नदी से कनेक्शन होने के बाद भी तेजी से घट रहा नदियों का पानी

गोपालगंज जिले से गुजरने वाली कई नदियां अपने धार्मिक, सांस्कृतिक गौरवशाली इतिहास को समेटी हुई हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि ये नदियां कार्तिक के महीने में ही सूखने लगी हैं. पानी कम होने के कारण ये नदियां नहर जैसे बन गयी हैं. कई नदियों में तो छठ के अर्घ तक के लिए भी शुद्ध पानी नहीं है. नदियां अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं. जिले के पश्चिम में यूपी व बिहार को बांटने वाली नदी खनुआ का पानी भी तेजी से गिर रहा है.

मई-जून में जिस स्थिति में नदी बहती थी, वैसे हालात नवंबर में हो गया है. सोना, स्याही, दाहा नदी, शहर से गुजरने वाली छाड़ी नदी, सिधवलिया से निकलने वाली घोघारी नदी की भी यही हालात है. दाहा नदी को संजीवनी देने के लिए जल संसाधन विभाग प्रोजेक्ट बना चुका है. उसे सरयू नदी में जोड़ने की योजना है. जबकि, छाड़ी नदी को गंगा में जोड़ने के लिए प्रोजेक्ट पर जल संसाधन विभाग काम कर रहा. गंडक नदी से दोनों नदियों को जोड़ने के लिए काम पूरा हो जाये तो नदियों को जीवनदान मिल जायेगा.

अभी स्याही, सोना व खनुआ नदी के लिए कोई योजना नहीं है. ये तीनों नदिया यूपी से निकलकर बिहार के गोपालगंज होकर सीवान में सरयू नदी को जोड़ती है. नदियों का पानी जिस प्रकार से घट रहा उससे साफ है कि मार्च से ही जिले में जल संकट का सामना करना पड़ सकता है.

पर्यावरण विशेषज्ञ धीप्रज्ञ द्विवेदी ने बताया कि नदियों को जोड़ने की योजना पर काम करना होगा. तभी उनको बचाया जा सकता है. सरकार को मिलकर काम करने की जरूरत है. गोपालगंज में खनुआ, सोना नदी, स्याही, दाहा नदी, छाड़ी घोघरी सभी महत्वपूर्ण नदियां है. इनमें पानी के कमी से जीव-जंतुओं पर भी संकट होगा.

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जहानाबाद जिले से होकर बहने वाली पांच नदियों पर गहराया संकट

जहानाबाद जिले से होकर पांच नदियां बहती हैं. सभी नदियां बरसाती हैं. जब बारिश होती है तभी नदियों में पानी आता है. शेष दिनों में ये नदियां सूखी रहती हैं. जिले में फल्गु, मोरहर, जमुने, बलदइया तथा दरधा नदी बहती हैं. ये सभी बरसाती नदियां साल के 11 महीने सूखी रहती हैं. जबकि, बरसात के एक महीने ही इन नदियों में पानी रहता है. नदियों में गाद भरे रहने के कारण पानी का ठहराव भी नहीं हो पाता है, जिसके कारण नदियों के आसपास के इलाकों में भी गर्मी के दिनों में जलस्तर काफी नीचे चला जाता है.

सिंचाई के लिए इन नदियों से कई ब्रांच नहर निकले हैं, लेकिन सालों भर इन नदियों में पानी नहीं रहने के कारण सिंचाई के लिए पानी का समुचित प्रबंध नहीं हो पाता है. बरसात में ही इन नदियों तथा इनके ब्रांच नहरों में पानी दिखता है. बरसात खत्म होने के साथ ही इन नदियों से पानी भी गायब होने लगा है. अधिकांश स्थानों पर नदियां सूखी पड़ी हैं. कुछ वैसे इलाके जहां नदी में बालू की निकासी हुई है या फिर मिट्टी का खुदाव हुआ है, वैसे निचले इलाके में ही पानी देखने को मिल रहा है. जिले में बहने वाली इन पांच नदियों से निकलने वाली ब्रांच नहरों से हजारों एकड़ भूमि सिंचित करने का लक्ष्य तो है, लेकिन सालों भर पर्याप्त पानी नहीं रहने के कारण सिंचाई का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है.

फल्गु नदी में ही उदेरा स्थान बराज बनाकर नहर निकाली गयी है, जिससे उस इलाके में खेतों को सिंचित किया जाता है. अन्य नदियों पर भी जगह-जगह पर बराज निर्माण की मांग उठती रही है लेकिन अब तक उन मांगों को पूरा नहीं किया गया है जिसके कारण सिंचाई का समुचित प्रबंध नहीं हो पा रहा है. इस संबंध में सिंचाई विभाग के प्राक्कलन पदाधिकारी पवन कुमार ने बताया कि जिले में बहने वाली सभी पांच नदियां बरसाती हैं. बारिश होने पर ही इन नदियों में पानी आता है. नदियों में गाद भरे रहने के कारण पानी का ठहराव भी नहीं होता है.

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