बेरोजगार अशोक झोपड़ी में रहते हैं-
अशोक भले ही मुश्किल परिस्थितियों में लोगों के लिए मददगार बनते हैं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति काफी दयनीय है. अशोक व उनका पूरा परिवार सालों से शहर के निचले इलाके में नदी तट के नजदीक बसे मोहल्ले में रहकर मुश्किल से गुजर बसर कर रहा है. उनका पक्का मकान नहीं है. वह झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते हैं. जब भी शहर के निचले इलाके में बाढ़ का पानी आता है, तो अशोक का घर इसमें डूब जाता है. इनके पास अभी कोई स्थायी रोजगार नहीं है.
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और भी कई हुनर हैं अशोक में
अशोक के पास और भी कई हुनर हैं. वह एक चित्रकार भी है. पिछले एक दशक से सैड आर्टिस्ट के रूप में भी अपनी पहचान बना रहे हैं. कई प्रमुख आयोजनों पर वह नदी किनारे सफेद बालू से कलाकृति बनाते है. कई सरकारी कार्यक्रम में भी पहुंचकर सैंड आर्ट बना रहे हैं. वहीं, अब वे बच्चों को चित्रकला की ट्रेनिंग भी देते हैं. उसी से हो रही आमदनी से मुश्किला से उनके घर का खर्च निकलता है. हालांकि, उन्हें नदी से प्रेम है. क्योंकि, नदी किनारे ही उनका आशियाना है. ऐसे में वह तैराकी व गोताखोरी को अपनी पहली रुचि मानते हैं.
बेटे को भी बना दिया है तैराक
अशोक ने अपने 15 साल के बड़े बेटे को भी एक कुशल तैराक बना दिया है. कई बार रेस्क्यू के दौरान नदी में वह अपने बेटे को लेकर भी जाते हैं. बेटा भी अब डूबत लोगों का मददगार बनने के लिए पूरी तरह तैयार है. आठ साल के छोटे बेटे को भी वह ट्रेनिंग दे रहे हैं. इतना ही नहीं, अपने मोहल्ले के आसपास के बच्चों तथा युवाओं को भी वह तैराकी व गोताखोरी का प्रशिक्षण दे रहे हैं. अशोक का कहना है कि यदि उन्हें संसाधन मिल् तो वह कुशल तैराकों व गोताखोरों की टीम खड़ी कर सकते हैं.
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