आद्रा नक्षत्र की दस्तक: खीर-पूड़ी, बारिश और लोक परंपराओं से महक उठा बिहार, जानें इसका महत्व

Bihar News: जून की उमस और तपिश के बीच जब हवा में ठंडक घुलने लगे और रसोई से खीर-पूड़ी की खुशबू आए, तो समझिए कि 'आद्रा नक्षत्र' आ चुका है. 22 जून से शुरू हुए इस नक्षत्र का बिहार में खास लोकाचार और भावनात्मक जुड़ाव है. यह सिर्फ मौसम परिवर्तन का संकेत नहीं, बल्कि परंपरा, खेती, संस्कृति और स्वाद का एक अद्भुत संगम है, जिसे हर घर में बड़े उत्साह से मनाया जाता है.

By Abhinandan Pandey | June 25, 2025 1:35 PM
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Bihar News: जून की तपती दोपहरों के बीच अचानक हवा में नमी घुलने लगे, आम की मिठास महसूस होने लगे, और रसोई से दाल पूड़ी व खीर की खुशबू बाहर तक फैलने लगे-तो समझ लीजिए, आद्रा नक्षत्र आ चुका है. बीते रविवार से ही इस नक्षत्र की दस्तक ने पूरे बिहार में जैसे जीवन का एक नया अध्याय खोल दिया है. जिसका हर बिहारी को साल भर इंतजार रहता है. इसे यूं ही ‘मिठास का महीना’ नहीं कहा जाता, यह केवल मौसम का बदलाव नहीं, बल्कि परंपरा, प्रकृति, स्वाद और सौहार्द का भी खास उत्सव है. आइए, जानते हैं आद्रा नक्षत्र के पारंपरिक महत्व, पौराणिक आस्था, और उस लोक-जीवन की कहानी, जिसे हर बिहारी पारंपरिक तरीके से सेलिब्रेट करता है.

मान्यता है कि आर्द्रा नक्षत्र से वर्षा ऋतु का आरंभ होता है और प्रकृति की ऊर्जा सक्रिय होती है. इस दिन महिलाएं घर में पारंपरिक व्यंजन बनाकर भगवान शिव को भोग लगाती हैं और परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं. यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. खासकर सूबे के मध्य और दक्षिणी हिस्से (मगध, पटना, गया, नालंदा, लखीसराय, जहानाबाद आदि) में परंपराएं और मौसम आधारित लोकाचार गहराई से जुड़े हुए हैं. मिथिला में भी अपनी संस्कृति और परंपरा विधान है. आर्द्रा नक्षत्र, जिसे स्थानीय भाषा में ‘अदरा नक्षत्र’ कहा जाता है, केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि कृषि, लोक-संस्कृति, रीति-रिवाज और भोजन से गहन रूप से जुड़ा उत्सव है. पौराणिक कथाओं में जिक्र मिलता है कि यह सर्वाधिक वर्षा देने वाला नक्षत्र है. धरती वर्षा से जितनी भीगेगी, उतना ही बढ़िया फसल (धान) उगेगी. इसे अलग-अलग समाज में अलग-अलग तरह से देखा और अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार मनाया जाता है.

27 नक्षत्रों में छठा स्थान रखता है यह नक्षत्र

अदरा नक्षत्र, जिसे ज्योतिष में आर्द्रा नक्षत्र कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के 27 नक्षत्रों में छठा स्थान रखता है. जब चंद्रमा इस नक्षत्र में प्रवेश करता है, तो इसे वर्षा ऋतु के आगमन का संकेत माना जाता है. यह कालखंड आमतौर पर जून के अंत से जुलाई की शुरुआत तक होता है और कृषि-प्रधान समाज में धान की रोपनी का प्रारंभिक चरण भी यही होता है. इस अवसर को अदरा बनाना कहा जाता है -यानी खेतों की पूजा, अच्छी वर्षा की कामना, और सामूहिक भोज का आयोजन.

‘आर्द्रा’ का मतलब ‘नमी’ या ‘भिगोना’

आर्द्रा नक्षत्र के देवता भगवान शंकर के रुद्र रूप माने जाते हैं. ‘आर्द्रा’ का अर्थ होता है ‘नमी’ या ‘भिगोना’, और यह संकेत करता है कि सूर्य के इस नक्षत्र में प्रवेश करते ही भारत में मानसून के आगमन की शुरुआत हो चुकी है. इसी कारण यह समय कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्षा इसी अवधि से प्रारंभ होती है और इससे खेती की गतिविधियों की दिशा तय होती है.

इस नक्षत्र में बरसात की पहली बूंद खेत, रीति व रसोई से जुड़ जाती हैं…

मगध क्षेत्र में मगही में कहा जाता है अदरा : डॉ राकेश सिन्हा

डॉ राकेश कुमार सिन्हा बताते हैं कि आद्रा 27 नक्षत्रों में एक है. आद्रा नक्षत्र को मगही में ‘अदरा’ कहा जाता है, और यह मूसलाधार वर्षा का संकेत होता है. एक कहावत है- “जब आयेगा अदरा, तब लगेगा बदरा”. कृषि प्रधान मगध में अदरा की बारिश को धान की खेती के लिए अमृत समान माना जाता है. अदरा आते ही किसान खेतों में जुट जाते हैं. इस अवसर पर हर वर्ग के घरों में खीर, चना दाल भरी पुड़ी (दालपूड़ी) और आम बनने की परंपरा है. यह सिर्फ व्यंजन नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक आयोजन होता है. अदरा की अवधि में ही ‘राम जतारा’ या ‘रमजतरा’ नाम से रथयात्रा निकाली जाती है. यह उत्सव खेत, परंपरा और श्रद्धा का संगम है, जो मगध की गहरी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है.

श्रावणी मेला की शुरू हो जाती है तैयारियां : शिव शंकर सिंह

इतिहासकार शिव शंकर सिंह पारिजात कहते हैं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रूद्र को आद्रा नक्षत्र का देवता माना जाता है, जो भगवान शिव के एक रूप हैं, जिसके कारण इस नक्षत्र का अंगभूमि भागलपुर में विशेष महात्म्य है; क्योंकि यहां की प्रसिद्धि विशिष्ट शिव-पूजन को लेकर है. पूरे श्रावण मास में देश के कोने-कोने से आकर लाखों श्रद्धालु यहां के सुल्तानगंज से उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल अपने कांवरों में लेकर इसे देवघर स्थित बैद्यनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंग पर अर्पित करते हैं. आद्रा नक्षत्र के प्रवेश के अवसर पर यहां घर-घर में खीर-पूड़ी और विशेष रूप से दाल पूड़ी (पूड़ी में दाल भरकर बनाया गया व्यंजन) के पकवान बनते हैं और पूजन के उपरांत बाल-बच्चों को उनकी सलामती की कामना के साथ परोसे जाते हैं.

खीर एवं दाल की पुड़ी खाने की है परंपरा : रीना सिंह

रीना सिंह कहती हैं, आकाश एवं आकाश मंडल के सभी नक्षत्रों में से एक आद्रा नक्षत्र भी है. जैसा की वैदिक शास्त्रों में लिखा है कि भगवान शिव के रूद्र रूप को आद्रा नक्षत्र का देवता माना जाता है. आकाश मंडल के 27 नक्षत्र में एक अलग ही छवि छटा भी बिखरने वाली आद्रा नक्षत्र है. साथ ही 27 नक्षत्रों में से यह छठा नक्षत्र है. आद्रा नक्षत्र शुरू होने के दिन बिहार में खासकर गांवों एवं उत्तरी बिहार में खीर एवं दाल की पूरी और आम जैसे विशेष पकवान खाना बनाने एवं आस पड़ोस में बांटे जाने की परंपरा है. यह वर्षा ऋतु के शुरुआत का प्रतीक है. इस नक्षत्र में विभिन्न वनस्पतियों का पेड़ लगाया जाता है. यह नक्षत्र शौर्य वंश के एक राजा अद्र पर भी आधारित है.

पूरे वर्ष सांप का विष नहीं करता है असर : सुनीता महाजन

सुनीता महाजन कहती हैं, यह अदरा नाम संस्कृत ‘आद्र’ से आया है, जिसका अर्थ होता है नम या गीला. इस नक्षत्र का आगमन बरसात के शुरुआत का संकेत है. इस नक्षत्र में पूरी धरती आद्र हो जाती है. हमारे घर में दादी की समय से ही खीर, दालपुड़ी और आम खाने का चलन है. यही चलन आसपास के घरों में भी देखने को मिलता है. दादी कहती थी कि अदरा में खीर और दाल पूड़ी खाने से पूरे वर्ष सांप का विष असर नहीं करता है. वामन पुराण के अनुसार नक्षत्र पुरुष भगवान नारायण के केशों में आर्द्रा नक्षत्र का निवास है. महाभारत के शांतिपर्व के अनुसार जगत को तपाने वाले सूर्य, अग्नि व चंद्रमा की जो किरणें प्रकाशित होती हैं, सब जगतनियंता के केश हैं. यही कारण है कि आर्द्रा नक्षत्र को जीवनदायी कहा जाता है.

जाने- इसके धार्मिक महत्व व परंपरा

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के जीवन में सूर्य का आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करना बहुत ही उत्तम माना जाता है. विशेषकर जब सूर्य की आर्द्रा नक्षत्र में उपस्थिति होने से इसकी महत्ता और बढ़ जाती है. आर्द्रा नक्षत्र उत्तर दिशा के स्वामी तथा इस नक्षत्र का स्वामी राहु होते है. इस नक्षत्र का अधिपति राहु है. आर्द्रा नक्षत्र से मिथुन राशि का निर्माण होता है. इसलिए इस पर मिथुन के स्वामी बुध का प्रभाव भी देखा जाता है.
ज्योतिष शास्त्र के विद्वान आचार्य राकेश झा ने पंचांगों के हवाले से बताया कि आषाढ़ कृष्ण द्वादशी में 22 जून को सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश कर गया है. आर्द्रा नक्षत्र के शुरू होने के साथ ही सनातन धर्मावलंबी के घरों में विशेष रूप से खीर, दाल वाली पूड़ी बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाकर ग्रहण करेंगे. आषाढ़ शुक्ल एकादशी 6 जुलाई की शाम 03:32 बजे तक यह नक्षत्र रहेगा.

आद्रा नक्षत्र में रोपाई: परंपरा और विज्ञान का संगम

बिहार समेत पूरे भारत में आद्रा नक्षत्र का विशेष महत्व है, खासकर धान की खेती के संदर्भ में. यह नक्षत्र आमतौर पर जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई की शुरुआत में आता है, जब मानसून सक्रिय होता है और खेतों में पर्याप्त नमी होती है. इसीलिए आद्रा नक्षत्र को रोपाई की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रीता सिंह बताती हैं कि आद्रा नक्षत्र के दौरान वर्षा की निरंतरता और तापमान की अनुकूलता धान के पौधों के बेहतर जमाव और वृद्धि के लिए अनुकूल होती है. इस समय की गई रोपाई से उत्पादन बेहतर होता है. बिहार के मिथिलांचल, मगध और भोजपुर क्षेत्रों में यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. किसान इस दिन को शुभ मानते हैं और गीत-नाद के साथ खेतों में उतरते हैं. वैज्ञानिकों की राय और पारंपरिक अनुभवों का मेल इस दिन को विशेष बनाता है.

(सहयोगी मानसी सिंह की रिपोर्ट)

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