शशिभूषण कुंवर,पटना बिहार में चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव. यहां पर मतदान में एक पैटर्न कमोबेश देखने को मिलती है कि इवीएम पर उंगली अकेली होती है, पर उसका फैसला ‘पारिवारिक पंचायत’ में होता है. बिहार की राजनीति को समझना है, तो चुनावी आंकड़ों से पहले घरों, चौक-चौराहों या चाय-पान की दुकानों पर होनेवाले बातचीत पर ध्यान देना होगा. मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय की ताजा नॉलेज एटीट्यूट एंड प्रैक्टिस (केएपी) सर्वे रिपोर्ट 2024 ने एक अहम सामाजिक-राजनीतिक सच्चाई उजागर की है. यहां हर वोटर अकेले नहीं, बल्कि पूरे परिवार की सामूहिक सोच का प्रतिनिधि होता है. सर्वे के रिपोर्ट अनुसार 41.4 प्रतिशत वोटरों का मतदान निर्णय उनके परिवार की राय से प्रभावित होता है. यानी मतदान भले ही इवीएम में एक व्यक्ति करता है, पर मतदान करने का निर्णय पूरा घर लेता है. यह सामाजिक व्यवहार बिहार को दूसरे राज्यों से अलग करता है, जहां अक्सर व्यक्ति विशेष की राजनीतिक पसंद प्रमुख होती है. इसके अलावा सर्वे के दौरान जब मतदाताओं से मतदान को लेकर कई प्रकार के प्रश्न पूछे गये, तो उन्होंने बेबाकी से जवाब दिया. राजनीतिक दलों के प्रति वोटरों की निष्ठा अब भी जिंदा है. सर्वे में 32.2 प्रतिशत वोटरों ने बताया कि वे पार्टी के आधार पर वोट देते हैं. इसके अलावा पार्टी के समानांतर प्रत्याशी के कनेक्शन को भी मतदाताओं ने तरजीह दी है. वोट करनेवाले हर तीसरे मतदाता (33.9 %) ने बताया कि कैंडिडेट के व्यक्तिगत संपर्क से प्रभावित होकर वे वोट करते हैं. जब सर्वे कराया गया, तो उसमें 32.8 प्रतिशत वोटरों की राय थी कि मतदान के समय अच्छा प्रत्याशी देखकर वोट देते हैं ,तो 22.4 प्रतिशत का मानना है कि मतदान में धनबल का प्रयोग किया जाता है.
संबंधित खबर
और खबरें