Jur Sital 2025 : शीतलता का लोकपर्व है जुड़-शीतल, नये वर्ष पर पुत्र से पितर तक का रखा जाता है ख्याल

Jur Sital 2025: ‘जुड़ शीतल' जैसे पर्यावरण केन्द्रित लोकपर्व हर प्राचीन समाज का हिस्सा रहा है. हां, इनका स्वरूप और मनाने का तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन अपने परिवेश और पर्यावरण को जीवित और संरक्षित रखने की परम्पराएँ सामान्य रूप से देखी जा सकती है. ऐसे लोकपर्वों पर सरकारों का एक अलग बजट होना चाहिए ताकि इन लोकपर्वों के बहाने प्रकृति और समाज दोनों का संरक्षण हो सके. जो कार्य सरकारी तंत्र बड़े बड़े घोटालों के बाद भी नहीं कर पाते उसे समाज की पुरानी परम्पराएँ उत्सवों के माध्यम से कर सकती है.

By Ashish Jha | April 13, 2025 8:27 AM
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Jur Sital 2025: पटना. शीतलता का लोकपर्व जुड़-शीतल की 14 अप्रैल से शुरुआत हो रही है. मिथिला में इसे नववर्ष के रूप मनाया जाता है. जुड़ शीतल पर पूरा समाज जल की पूजा करता है और शीतला देवी से शीतलता की कामना करना है. दो दिवसीय इस पर्व में पहले दिन 14 अप्रैल को सतुआन और दूसरे दिन 15 अप्रैल को धुरखेल होता है. जुड़ शीतल का अर्थ होता है शीतलता से भरा हुआ. जिस प्रकार बिहार के लोग छठ में सूर्य और चौरचन में चंद्रमा की पूजा करते हैं, उसी प्रकार जुड़ शीतल पर पूरा समाज जल की पूजा करता है. दो दिनों के इस पर्व में एक-दूसरे के लिए शीलतता की कामना की जाती है.

जुड़ शीतल का प्रकृति से सीधा संबंध

जुड़ शीतल का प्रकृति से सीधा संबंध है. इस पर्व के पीछे फसल तंत्र और मौसम भी कारक है. मिथिला में सत्तू और बेसन की नयी पैदावार इसी समय होती है. इस पर्व में इसका बड़ा महत्व है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो इसके इस्तेमाल से बने व्यंजन को अधिक समय तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है, जिससे खाना बर्बाद न हो. आमतौर पर गर्मी के कारण खाने-पीने के व्यंजन जल्दी खराब हो जाते हैं. इससे बचने के लिए लोग गर्मी सीज़न में सत्तू और बेसन का इस्तेमाल अधिक करते हैं. ऐसे में इस पर्व के पहले दिन सतुआन होता है, सतुआन के दिन सत्तू की विभिन्न प्रकार की सामग्री बनती है.

पुत्र से पितर तक का रखा जाता है ख्याल

इस पर्व के मौके पर सबसे पहले तुलसी के पेड़ में नियमित जल प्रदान करने हेतु घड़ा बांधा जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की प्यास बुझती है. सुबह माताएं अपने बच्चों के सिर पर पानी का थापा देती हैं, माना जाता है कि इससे पूरे साल उसमें शीतलता बनी रहे. इस दिन संध्या को घर के सभी लोग पेड़-पौधों में जल डालते हैं, जिससे गर्मी के मौसम में भी पेड़-पौधे हरे भरे रहें और वे सूखें नहीं. लोगों का मानना है कि पेड़-पौधे भी उनके परिवार का हिस्सा हैं और वह भी हमारी रक्षा करते हैं. मतलब इस पर्व में पुत्र से पितर तक के अंदर शितलता बनी रहे इसकी कामना की जाती है.

जलसंग्रह की सफाई, चूल्हे को आराम

इस पर्व के दूसरे दिन धुरखेल होता है. इस दिन पूरा समाज जल संग्रह के स्थलों जैसे कुआं, तालाब की सफाई करता है. चूल्हे को आराम देता है. मगध में इस दिन को बसियोरा कहा जाता है. इस दिन एक दिन पहले बना बासी खाना खाया जाता है. दोपहर बाद शिकार खेलने की परंपरा थी, जो अब खत्म हो चुकी है, लेकिन रात में मंसाहार खाने की परंपरा अभी भी कायम है.

ग्लोबल वार्मिंग से बचना है तो जुड़ शीतल मनाइये

पिछले कुछ दशकों में आधुनिकीकरण के कारण ग्लोबल वार्मिंग जैसी चीजें बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में पर्यावरण को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है. जुड़ शीतल त्योहार मुख्य रूप से प्रकृति से जुड़ा हुआ है. यह जरूरी है कि आज प्रकृति पूजन की इस विधि को बढ़ावा दिया जाए और इसका प्रचार-प्रसार किया जाए. ग्लोबल वार्मिंग के इस बढ़ते खतरे के बीच जुड़ शीतल जैसे त्योहार हमें प्रकृति के प्रति प्रेम, सद्भाव और संरक्षण की प्रेरणा देता है. लोगों को जागरूक कर न सिर्फ आज बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियों को भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बेहतर विकल्प दिया जा सकता है.

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