Patna News: वैशाली के ‘बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय एवं स्मृति स्तूप’ में भगवान बुद्ध का पावन अस्थि कलश 29 जुलाई 2025 को विधिवत स्थापित किया गया. इस कलश में भगवान बुद्ध के चिता के भस्मावशेष का एक बड़ा हिस्सा सुरक्षित रूप से रखा गया है. यह अस्थि कलश न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है. इस कलश के साथ कुछ अन्य दुर्लभ वस्तुएं भी संग्रहीत हैं, जो बुद्ध से संबंधित उस काल की सांस्कृतिक विरासत को उजागर करती हैं. इनमें एक सोने का टुकड़ा, तांबे का पंचमार्क सिक्का, एक कौड़ी और दो मनके (बीड) शामिल हैं- जिनमें से एक शीशे का (जो टूटा हुआ है) और एक पत्थर का है. ये सभी वस्तुएं एक प्राचीन पत्थर के बने छोटे अस्थि कलश में खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थीं.
कभी खोला नहीं गया अस्थि कलश
यह पावन अस्थि कलश लगभग आठ वर्षों तक ‘केपी जयसवाल शोध संस्थान’ में और उसके बाद 59 वर्षों तक ‘पटना संग्रहालय’ में संरक्षित रहा. इस दौरान अस्थि कलश को कभी खोला नहीं गया, क्योंकि बार-बार खोलने पर भस्मावशेषों के उड़ जाने का खतरा बना रहता था. हालांकि, कलश के साथ प्राप्त अन्य वस्तुएं -जैसे कि सोने का टुकड़ा, सिक्का, कौड़ी और मनके- को अस्थि कलश से अलग निकालकर, संग्रहालय में इसके समीप प्रदर्शन के लिए रखा गया था, ताकि दर्शक बुद्ध कालीन इस अमूल्य धरोहर के दर्शन कर सकें.
विशेष स्तूप नुमा गैलरी में रखा गया था अस्थि कलश
भगवान बुद्ध का अस्थि कलश पटना म्यूजियम में विशेष स्तूप नुमा गैलरी बना कर उसमें रखा गया था. उस गैलरी में भगवान बुद्ध के अवशेष के अलावा केवल उनकी कुछ मूर्तियों और उनसे संबंधित वस्तुओं को रखा गया था. इसके साथ ही बुद्ध अस्थि कलश के चारों ओर उस पूरे घटनाक्रम को भी दर्शाया गया था, जिसमें भगवान बुद्ध का अस्थि कलश प्राप्त हुआ.
1958-59 में एएस अल्टेकर ने करवाई थी खुदाई
मड स्तूप की खुदाई केपी जायसवाल शोध संस्थान के निदेशक एएस अल्टेकर ने करवाई थी, जिसमें बौद्ध अस्थि कलश प्राप्त हुआ. खुदाई की शुरुआत 1958-59 में हुई और पहले ही चरण में वे बौद्ध अस्थि कलश प्राप्त करने में सफल रहे. वैशाली से अस्थि कलश लेकर वे केपी जायसवाल शोघ संस्थान आ गये जहां उस खुदाई की रिपोर्ट लिखी जानी थी. 1966-67 तक उस खुदाई की रिपोर्ट लेखन पूरी होने तक पावन अस्थि कलश केपी जायसवाल शोध संस्थान में ही रही जो आज ही की तरह उन दिनों भी पटना म्यूजियम भवन के ही एक हिस्से में चलता था. 1967 के अंत में वह पटना म्यूजियम में विशेष रूप से निर्मित अस्थि कलश गैलरी में आ गयी.
पटना म्यूजियम में हर साल देखने आते थे 500 विदेशी पर्यटक
बीते 58 वर्षों से यह भस्मावशेष पटना म्यूजियम में था. इस दौरान बीते तीन वर्षों (1922-25) को छोड़कर जब पटना म्यूजियम नये दीर्घाओं के निर्माण के कारण बंद रहा, इस गैलरी को देखने हर वर्ष लगभग 20 हजार देशी और 500 विदेशी पर्यटक आते थे. इस प्रकार 55 वर्षों में 11 लाख देसी और 27 हजार से अधिक विदेशी पर्यटक देख चुके हैं. देशी पर्यटकों के लिए पटना म्यूजियम में अस्थि कलश को देखने के लिए अलग से 100 रुपये का और विदेशी पर्यटकों को 500 रुपये का टिकट लेना पड़ता था.
अब्दुल कलाम भी देख चुके हैं अस्थि कलश को
थाइलैंड और भूटान के राजा समेत कई वीवीआईपी मेहमान देख चुके अस्थि कलश राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, भूटान के राजा, श्रीलंका के राष्ट्रपति समेत कई वीवीआईपी मेहमान भी अस्थि कलश देख चुके हैं. इनमें थाइलैंड के वर्तमान राजा भी शामिल हैं जो वर्षों पहले राजकुमार के रूप में इसे देखने आये थे. दलाई लामा भी इसे देखने आ चुके हैं.
स्मृति स्तूप के 500 मीटर की दूरी पर ही मिला था अस्थि कलश
बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय एवं स्मृति स्तूप के 500 मीटर की दूरी पर ही अस्थि कलश मिला था. चूंकि मड स्तूप का क्षेत्र जहां अस्थि कलश मिला था उसके महत्व को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पहले ही उसे संरक्षित स्थल घोषित कर रखा है. लिहाजा बगल के प्लॉट पर 78 एकड़ में भव्य बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय एवं स्मृति स्तूप का निर्माण किया गया है. पूर्व निदेशक संग्रहालय बिहार के उमेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि अजात शत्रु के समय रखी गयी थी अस्थि कलश में भस्मावशेष भगवान बुद्ध का देहावसान पांचवी सदी ईस्वी पूर्व में हर्यक वंश के मगध सम्राट अजातशत्रु के समय हुआ था. उसी समय पत्थर के उस छोटे कलश (कैसकेट) का भी निर्माण हुआ जिसमें वह मड स्तूप में रखा हुआ मिला था. बाद में अशोक ने उसमें से कुछ भस्मावशेष को निकाल कर उस पर अपने साम्राज्य के अलग अलग हिस्सों में 84 हजार बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया.
राजगीर के बाद वैशाली पहुंचे थे भगवान बुद्ध
भगवान बुद्ध जगह-जगह घूमा करते थे. इस दौरान वे राजगीर के वेणुवन में रहे और फिर यहां से बोधगया चले गये थे, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद उत्तर प्रदेश के सारनाथ चले गये जहां उन्होंने पहला उपदेश दिया. उसके बाद वे पुनः राजगीर आये और गृद्धकूट पर्वत पर उपदेश देने लगे. इसके बाद भगवान बुद्ध के वैशाली में ठहरे और फिर केसरिया (पूर्वी चंपारण), लौरिया नन्दन गढ़ (पश्चिमी चंपारण) होते हुए कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) पहुंचे थे. अंत में ये बहुत बीमार हो गये थे और उत्तर प्रदेश के कुशीनगर पहुंचे, जहां उनका निधन हो गया.
बुद्ध से जुड़े सभी स्थलों का हुआ विकास
राज्य सरकार ने राज्य में भगवान बुद्ध से जुड़े सभी स्थलों का विकास कराया है. राजगीर के वेणुवन के क्षेत्र को बढ़ाया गया है और इसका सौंदर्गीकरण कराया गया है. गृद्धकूट पर्वत पर आने-जाने के लिए रास्ते को ठीक कराया गया है. घोड़ा कटोरा में भगवान बुद्ध की 50 फीट ऊंची प्रतिमा लगायी गयी है. वर्ष 2010 में पटना में बुद्ध स्मृति पार्क एवं बुद्ध स्तूप का निर्माण कराया गया है. अब वैशाली में बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय सह स्मृति स्तूप का उद्घाटन किया गया है. बौद्ध पर्यटक स्थलों को एक सर्किट में जोड़ा गया है. बोधगया आने वाले पर्यटक राजगीर, राजगीर से पटना, पटना से वैशाली तथा वैशाली से केसरिया स्तूप, लौरिया नन्दन गढ़ होते हुए पश्चिमी चंपारण जिले में गंडक नदी पर निर्मित धनाह-रतवल (गौतम बुद्ध) सेतु से कुशीनगर जा सकते हैं.
2019 में हुआ था स्तूप का शिलान्यास
बतादें कि वैशाली ऐतिहासिक और पौराणिक भूमि है, जिसने दुनिया को पहला गणतंत्र दिया. यह नारी सशक्तीकरण की भी भूमि रही है. बौद्ध धर्मावलंबियों के संघ में पहली बार यहां महिलाओं को शामिल किया गया. बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय एवं स्मृति स्तूप बिहार की सांस्कृतिक धरोहर और वैश्विक बौद्ध विरासत का भव्य प्रतीक है. सौर ऊर्जा संयंत्र के साथ-साथ इस परिसर में बेहतर पार्किंग की व्यवस्था की गई है. इस स्तूप का वर्ष 2019 में शिलान्यास किया गया था.