Patna News: पटना में एक महिला की जिंदगी उस वक्त थम गई, जब वह साधारण साइनस के इलाज के लिए डॉक्टर के पास गई थी. दरअसल, डॉक्टर ने बिना ICU, एनेस्थेटिस्ट और किसी महिला डॉक्टर की मदद के बिना ऑपरेशन कर दिया. लेकिन, महिला ऑपरेशन के बाद कभी होश में नहीं आई. जिसके चलते 15 दिन बाद उसकी मौत हो गई. यह मामला साल 2002 का है, जो 2025 तक उपभोक्ता आयोग में चलता रहा. अंततः 1 अप्रैल 2025 को जिला उपभोक्ता आयोग ने डॉक्टर को दोषी ठहराते हुए 11.50 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया.
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क्या था पूरा मामला?
पटना के खगौल निवासी भरत कुमार गुप्ता की पत्नी को साइनस की शिकायत थी. जिसके इलाज के लिए 6 दिसंबर 2002 को वे ENT विशेषज्ञ डॉ अवधेश प्रसाद गुप्ता के पास इलाज के लिए गईं. डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन की सलाह दी और अगले दिन यानी 7 दिसंबर की सुबह ऑपरेशन कर दिया. परिजनों ने इस पर आपत्ति जताई थी. क्योंकि, क्लिनिक में ICU, महिला डॉक्टर और विशेषज्ञ एनेस्थेटिस्ट की व्यवस्था नहीं थी. लेकिन, डॉक्टर ने सब कुछ सामान्य बताते हुए ऑपरेशन कर दिया. ऑपरेशन के बाद महिला को होश नहीं आया.
मरीज के परिजनों द्वारा चिंता जताने के बाद भी पूरे दिन डॉक्टर आश्वासन देते रहे कि जल्द होश आ जाएगा. अगले दिन हालत गंभीर होने पर मरीज को न्यूरो सर्जन डॉ प्रदीप कुमार के पास भेजा गया. उन्होंने तुरंत मगध अस्पताल में भर्ती कराया. मरीज को ICU में रखा गया, इलाज चलता रहा, लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ और 20 दिसंबर को महिला की मौत हो गई.
ऑपरेशन में लापरवाही पर डॉक्टर का पक्ष
मामले की सुनवाई के दौरान डॉक्टर अवधेश प्रसाद (Dr Avadhesh Prasad) ने माना कि उन्होंने ऑपरेशन किया था, लेकिन किसी लापरवाही से इनकार किया. उन्होंने दावा किया कि एनेस्थेटिस्ट मौजूद था और पहले मरीज के बेटे का भी ऑपरेशन वहीं किया गया था. साथ ही, डॉ अवधेश ने अपनी दक्षता और लंबे अनुभव का भी हवाला दिया. वहीं, न्यूरो सर्जन डॉ प्रदीप कुमार (Neurosurgeon Dr Pradeep Kumar) बताया कि उनके समक्ष मामला विलंब से आया. मस्तिष्क को गंभीर क्षति भी पहुंची थी और स्वजन की सहमति से मरीज को मगध अस्पताल (Magadh Hospital) भेजा गया था. दोनों ने अपनी ओर से इलाज में किसी भी प्रकार की कमी से इनकार किया.
चिकित्सकीय मानकों की अनदेखी बनी जानलेवा
इस मामले पर जिला उपभोक्ता आयोग ने विशेषज्ञों की राय, मेडिकल रिकॉर्ड और केस लॉ का हवाला देते हुए कहा कि बिना ICU, एनेस्थेटिस्ट और न्यूनतम सुविधाओं के ऑपरेशन करना चिकित्सीय लापरवाही है. आयोग ने कहा कि ऑपरेशन के बाद मरीज का बेहोश रहना, फिर मस्तिष्क को नुकसान पहुंचना और अंत में मौत हो जाना. ये सभी संकेत लापरवाही की ओर इशारा करते हैं. ‘Res Ipsa Loquitur’ यानी ‘परिस्थितियां खुद गवाही देती हैं’ के सिद्धांत का हवाला देते हुए आयोग ने माना कि डॉक्टर ने मानक प्रक्रिया का पालन नहीं किया.
लापरवाही पर डॉक्टर को भुगतने होंगे लाखों रुपये
दोनों पक्षों को सुनने व एक्सपर्ट की राय लेने के बाद जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष प्रेम रंजन मिश्र व सदस्य रजनीश कुमार की अध्यक्षता में सुनाए गए आदेश में डॉक्टर दोषी ठहराया. साथ ही, 25 अगस्त 2003 (शिकायत की तारीख) से 12% वार्षिक ब्याज के साथ ₹10 लाख मुआवजा का भुगतान करने का आदेश दिया. इसके अलावा ₹1 लाख मानसिक कष्ट के लिए और ₹50,000 मुकदमे के खर्च के रूप में भुगतान करने को कहा गया. यानी कुल मिलाकर डॉक्टर को ₹37.42 लाख का भुगतान करना होगा. यदि आदेश की प्रति मिलने के 120 दिन के भीतर भुगतान नहीं होता, तो अतिरिक्त ₹10,000 की राशि वसूली खर्च के रूप में देनी होगी.
23 साल की लड़ाई के बाद मिला न्याय
भरत कुमार गुप्ता की ओर से यह मामला 2003 में उपभोक्ता आयोग में दर्ज कराया गया था. वर्षों तक सुनवाई चली. 2015 में पहली बार डॉक्टर को दोषी ठहराया गया, लेकिन वह मामला राज्य आयोग में चला गया और दोबारा जिला आयोग को भेजा गया. इसके बाद नई मेडिकल रिपोर्ट मंगाई गई, जिसमें तकनीकी दस्तावेजों के अभाव के बावजूद उपलब्ध तथ्यों और न्यायिक मिसालों के आधार पर यह ऐतिहासिक फैसला आया.
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