आंदोलनकारी के रूप में बसंत पाठक व किशुन मरांडी जहां गुरुजी शिबू सोरेन के साथ रम गये, तो वहीं बतौर शिक्षक देवान मुर्मू सामाजिक स्तर पर उनके आंदोलन में सहयोग करते थे. गुरुजी शिबू साेरेन के नेतृत्व में आंदोलन करनेवाले झारखंड आंदोलनकारी गुरुजी के संघर्षों को स्मरण कर अपनी बात रखते नहीं थक रहे हैं. आझाडीह के जोन मुर्मू व गिरनियां के भागवत सिंह ने बताया कि शिबू सोरेन ने सबसे पहले महाजनी प्रथा और शोषण के खिलाफ आवाज उठायी थी. वर्ष 1972 में वे टुंडी के मंझलाडीह गांव के पोखरिया आश्रम में रहते थे और वहीं से गांडेय आकर उन्होंने शोषण के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. उस समय महाजनी प्रथा चरम पर थी. महाजन गरीब किसानों को धान और अन्य सामान कर्ज पर देते थे. फिर वसूली के नाम पर उनकी जमीन हड़प लेते थे. शिबू सोरेन ने सबसे पहले लोगों को एकजुट किया. गांडेय में बसंत पाठक और तीनपतली में दीवान मुर्मू के साथ मिलकर गरीब किसानों की जमीन महाजनों से मुक्त करायी.
संबंधित खबर
और खबरें