स्लीपर बसों में यात्रा करना है जानलेवा, बिहार से दिल्ली जा रही बस में लगी आग ने बढ़ायी चिंता

Sleeper Bus News: ट्रेन का टिकट नहीं मिलना और हवाई यात्रा महंगा होने के कारण लोगों को अब यह स्लीपर बसें ही पसंद आ रही हैं. ऐसे में जिन लोगों को 300 से 1000 किलोमीटर तक का सफर करना होता है, उन्हें स्लीपर बसों से यात्रा करना सबसे किफायती लगती है. इन बसों में सीटों की व्यवस्था इस तरह से होती है कि यात्री सोते हुए सफर कर सकते हैं. हालांकि, कब यह सफर जानलेवा बन जाये, कोई नहीं जानता. अकेले जमशेदपुर शहर से बिहार, यूपी और ओडिशा या बंगाल जाने वाली करीब 38 बसें स्लीपर हैं.

By Mithilesh Jha | May 16, 2025 5:30 AM
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Sleeper Bus News| जमशेदपुर, ब्रजेश सिंह : बिहार से दिल्ली जा रही स्लीपर बस गुरुवार की सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हादसे का शिकार हो गयी. बास में आग लगने से दो महिला और दो बच्चे समेत पांच लोगों की मौत हो गयी. यह घटना झारखंड सरकार के लिए भी सबक हो सकती है. यहां भी स्लीपर बसों में सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है. खास तौर पर राज्य की औद्योगिक राजधानी जमशेदपुर से खुलने वाली लगभग सारी स्लीपर बसों में किसी तरह का कोई सुरक्षात्मक इंतजाम नहीं हैं. नियमों की अवहेलना कर बसों का संचालन किया जा रहा है. निजी बस संचालक अतिरिक्त लाभ कमाने के चक्कर में बसों की मूल डिजाइन में छेड़छाड़ कर हर दिन हजारों मुसाफिरों की जान जोखिम में डाल रहे हैं.

  • जमशेदपुर से चलने वाली स्लीपर बसों में सुरक्षा मानक का कोई ध्यान नहीं
  • बिहार से दिल्ली जा रही स्लीपर बस में अगलगी की घटना से बढ़ी चिंता
  • शहर से बिहार, यूपी, ओडिशा व बंगाल के लिए चलती हैं 38 स्लीपर बसें

ट्रेन का टिकट नहीं मिलना और हवाई यात्रा महंगा होने के कारण लोगों को अब यह स्लीपर बसें ही पसंद आ रही हैं. ऐसे में जिन लोगों को 300 से 1000 किलोमीटर तक का सफर करना होता है, उन्हें स्लीपर बसों से यात्रा करना सबसे किफायती लगती है. इन बसों में सीटों की व्यवस्था इस तरह से होती है कि यात्री सोते हुए सफर कर सकते हैं. हालांकि, कब यह सफर जानलेवा बन जाये, कोई नहीं जानता. अकेले जमशेदपुर शहर से बिहार, यूपी और ओडिशा या बंगाल जाने वाली करीब 38 बसें स्लीपर हैं. इनमें करीब एक दर्जन बस में बैठने का कोई इंतजाम ही नहीं है. सभी सीटें स्लीपर ही हैं.

बसों की बनावट बदली गयी

प्राइवेट बसों के तय नियम के तहत स्लीपर बसों में 30 लेटने वाली या 15 लेटने और 32 बैठने की सीटें तय हैं. बस संचालक अतिरिक्त लाभ कमाने के चक्कर में इसमें बदलाव कर देते हैं. पूर्ण स्लीपर बस में 30 की जगह 36 लेटने वाली सीट लगा देते हैं. वहीं, मिश्रित बस में 15 स्लीपर के साथ बैठने वाली 18 अतिरिक्त सीट लगा देते हैं. इससे बैठने वाली यात्रियों की संख्या 32 से 50 हो जाती है. बस में यात्रियों की कुल संख्या 47 से बढ़कर 65 हो जाती है. इससे बस में अतिरिक्त भार होने से पटलने का खतरा बढ़ जाता है. साथ ही सीट बढ़ाने के लिए आपातकाल द्वार बंद कर देते हैं. एक स्लीपर बस में चार आपातकाल द्वार होते हैं. आग लगने या हादसा के समय यह खतरनाक हो जाता है.

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बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई शहरों के लिए जमशेदपुर से चलती हैं बसें

यह बसें जमशेदपुर से बिहार और पूर्व उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों के लिए चलती हैं. ये यात्रियों की जान जोखिम में डालने के साथ यह परिवहन निगम को राजस्व का भी नुकसान पहुंचाते हैं. इसकी ऊंचाई भी करीब आठ फीट तक कर दी गयी है, जो उसके बैलेंस सिस्टम को भी गड़बड़ कर देता है. कोई भी आपात द्वार तक नहीं है. नियमों के अनुसार बस की ऊंचाई जमीन से 13 फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. साथ ही छत पर सामान लादने की भी मनाही है. लेकिन, अब बसों की ऊंचाई 16 फीट तक हो चुकी है. उसके ऊपर ये लोग सामान भी लाद लेते हैं. ओवरलोडिंग की वजह से गाड़ियां पलटने का भी खतरा होता है.

गाड़ियों की बनावट व इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों से छेड़छाड़, आग की बड़ी वजह

गाड़ियों की बनावट को बदला जाता है. बॉडी बिल्डर कंपनियां अपनी मर्जी से इसमें बदलाव करती हैं. कई सारे इलेक्ट्रॉनिक आइटम को स्थानीय स्तर पर खोलकर बदला जाता है. इस कारण नामी गिरामी कंपनियों की बसों में आग लगने की घटनाएं होती हैं. यह लापरवाही से ही आग लगती है. रेस्क्यू का कोई इंतजाम तक नहीं है.

एक फीट से भी कम चौड़ी होती है गैलरी

शहर से खुलने वाली स्लीपर बसों से यात्रा करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, उसी तरह हादसे को लेकर परिवहन विभाग या बस मालिक कोई कदम नहीं उठा रहे हैं. ऐसी बसें हादसे का शिकार हो जाती हैं, जिसकी पहली वजह स्लीपर बसों की बनावट और दूसरी वजह रिस्पॉन्स मैकेनिज्म है. आम तौर पर स्लीपर बसों में एक तरफ दो और दूसरी तरफ एक स्लीपर सीट होती है. इन सीटों की साइज 6 फीट बाय 2.6 फीट होता है. यानी बस की कुल चौड़ाई में से 7 फीट 6 इंच सीटें कवर कर लेती हैं. बस की कुल चौड़ाई ही 8 फीट 4 इंच होती है.

यहां सबसे बड़ी दिक्कत गैलरी की रहती है, जो कि एक फीट से भी कम चौड़ी बचती है. इतनी कम चौड़ी गैलरी से निकलना बहुत मुश्किल होता है. जब स्लीपर बस हादसे का शिकार होती है, तब यात्रियों के लिए बहुत ही कम चौड़ी गैलरी से निकलना मुश्किल होगा. इस वजह से लोग बस में फंस जाते हैं और मौत ज्यादा होती है. फायर एक्सटींग्यूशर तक नहीं है. आग लगने की स्थिति में क्या होगा. गाड़ी पलट जाये तो क्या होगा, कैसे लोग खुद को निकालेंगे, इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसी सीटें और स्लीपर बनायी गयी है कि लोग सरक सकते हैं, पैदल चल भी नहीं सकते हैं.

नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं, पैसे लेकर आंख मूंदकर बैठे हैं अधिकारी

बसों में नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं और पैसे लेकर आंख मूंदकर जिम्मेदार अधिकारी बैठे हैं. एमवीआइ और डीटीओ के स्तर पर यह कार्रवाई होनी चाहिए. नियमों के अनुसार, बस की ऊंचाई जमीन से 13 फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. साथ ही छत पर सामान लादने की भी मनाही है. लेकिन, बस संचालक इन परिवहन नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं. हर दिन खुलेआम बसों पर सामान लदे दिख जायेंगे. परिवहन विभाग के नियमों के मुताबिक, ऐसा करना अवैध है. इसके लिए 20 हजार 500 रुपये अर्थदंड का प्रावधान है. लेकिन, आम तौर पर जुर्माना नहीं किया जाता. पुलिस व सेल्स टैक्स के लोग भी इस अवैध धंधे से वाकिफ हैं, पर कोई कार्रवाई नहीं होती. क्योंकि, उनको इसके बदले अलग से कमीशन दिया जाता है. हर बस वाले से मंथली बंधा है, सीट आरक्षित उनके नाम पर होती है. इस कारण कोई कार्रवाई विभाग की ओर से नहीं की जाती है.

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