Jamshedpur : वैशाख : माह एक, पर्व के रंग अनेक

वैशाख : माह एक, पर्व के रंग अनेक

By AKHILESH KUMAR | April 13, 2025 12:44 AM
feature

जमशेदपुर. यूं तो हर भारतीय पर्व प्रकृति से जुड़ा सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है. लेकिन, वैशाख में ऐसे लोकपर्व मनाये जाते हैं, जिसमें परंपराओं की महत्ता अनुष्ठान से अधिक है. इन लोकपर्वों को पंजाब में बैसाखी, ओडिशा में पोणा संक्रांति, बंगाल में ‘पोइला बोइशाख’, बिहार में ‘सतुआन’ और मिथिलांचल में ‘जुड़ शीतल’ के नाम से मनाया जाता है. सबसे खास बात यह है कि इन लोकपर्वों में खान-पान में उपयोग में लायी जाने वाली चीजें वैशाख माह की तपिश से भी राहत दिलाती हैं. इन लोकपर्वों को अलग-अलग समाज में मनाने की परंपरा भले ही अलग-अलग है, पर मकसद एक ही है कि किस तरह हम गर्मी से खुद व परिवारजनों का बचाव करेंगे. यह हमारी विविधता में एकता की पहचान ही है, जो किसी न किसी रूप में देश की समृद्ध सांस्कृतिक व विरासत का अहसास कराती है.

ओडिया समाज पोणा संक्रांति के साथ मनायेगा नववर्ष की खुशियां

वैशाख की शुरुआत में ओडिया समाज पोणा संक्रांति के साथ नये वर्ष की खुशियां मनायेगा. इस वर्ष पोणा संक्रांति 14 अप्रैल को है. इस दिन घरों में विशेष प्रकार के शरबत बनते हैं. वैशाख के साथ गर्मी की तपिश शुरू हो जाती है. इस दिन पोणा शरबत व अन्य पकवान कुलदेवता भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है. फिर लोग उसे ग्रहण करते हैं. हर साल उत्कल एसोसिएशन में पोणा संक्रांति का सामूहिक आयोजन किया जाता है. लोग एक-दूसरे से मिलते हैं. नये वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं. साथ ही उड़िया साहित्य एवं संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों का आनंद लेते है. अंत में पोणा का सेवन कर घर लौटते हैं.

सत्तू, बेल और आम से बनाते हैं पोणा शरबत

निभायी जाती है ठेकी परंपरा

केबुल टाउन के जयराम दास ने बताया कि पोणा संक्रांति के दिन ठेकी परंपरा निभायी जाती है. इसमें आंगण में तुलसी के पौधे के ऊपर दोनों ओर से लकड़ी से स्टैंड बनाते हुए छेद किया हुआ मिट्टी का कलश टांगा जाता है. इसमें कुश डाल कर ऊपर से पानी डाल कर पूजा की जाती है, ताकि तुलसी के पौधे पर बूंद-बूंद पानी गिरता रहे. गर्मी से लोगों को राहत मिले इसकी कामना तुलसी माता से की जाती है.

जुड़ शीतल के साथ मिथिलावासी रखेंगे नये वर्ष में कदम

मिथिला में अलग-अलग रूपों में प्रकृति की पूजा की जाती है. जुड़-शीतल भी मिथिला की संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व है. इस साल 15 अप्रैल को जुड़ शीतल है. यह पर्व मैथिली पंचांग के मुताबिक वैशाख के प्रथम दिन नूतन वर्ष के अवसर पर मनाया जाता है. यह पर्व प्रेम एवं आस्था का प्रतीक है. इसमें वृद्धजन अपने से छोटे उम्र के लोगों को शुख-शांति एवं दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं. यह साल का एक दिन है, जब घर के चूल्हे को रेस्ट दिया जाता है. मिथिलावासियों के घरों में इस दिन चूल्हा नहीं जलाने की परंपरा है. इस मौके पर प्रकृति से जुड़ते हुए सत्तू और आम के टिकोला की चटनी को खाया जाता है. इस वजह से इस पर्व को कोई सतुआनी, तो कोई बसिया पर्व भी कहते हैं.

पुत्र से पितर तक का रखा जाता है ख्याल

पेड़-पौधों में डालते हैं जल

सिदगोड़ा की निशा झा ने बताया कि इस दिन संध्या को घर के सभी लोग पेड़-पौधों में जल डालते हैं, जिससे गर्मी के मौसम में भी पेड़-पौधे हरे भरे रहें और वे सूखें नहीं. लोगों का मानना है कि पेड़-पौधे भी उनके परिवार का हिस्सा हैं और वह भी हमारी रक्षा करते हैं. वहीं, इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाने की परंपरा होने से गर्मी में जल्दी खराब नहीं होने वाले खाद्य पदार्थ दाल पुरी और बेसन बड़ी से कढ़ी, आम की चटनी पहले ही बनाकर रख लेते हैं. यही खाद्य पदार्थ जुड़ शीतल के दिन सब खाते हैं.

सतुआन बिहार की पुरानी परंपरा

बिहार, विशेषकर भोजपुरी क्षेत्र में वैशाख की शुरुआत में सतुआन मनाने की परंपरा है. इस वर्ष 14 अप्रैल को सतुआन है. यही मैथिली भाषी क्षेत्र में जुड़ शीतल के नाम से प्रचलित है. इसमें आम की चटनी व सत्तू को घोलकर पहले सूर्य देव को चढ़ाया जाता है. फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. सत्तू का स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्व है. सतुआन के पीने के कई फायदे भी हैं. कहा जाता है कि अब मौसम तेजी से गर्म होगा, आने वाले दिनों में नौतपा होने वाला है, जब खेतों की मिट्टी बिल्कुल सूखकर कड़ी हो जायेगी. मनुष्य जब गर्मी से त्रस्त हो जायेगा, तो ऐसे में सत्तू ही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो शीतलता दे पायेगा.

गर्मी में रामबाण है सत्तू

गर्मी के आ जाने की घोषणा करता है सतुआन

एनएच 33 के पास रहनेवाली अंजना सिंह ने बताया कि उत्तर भारत की लोक संस्कृति में यह प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है. आज से कुछ दशक पूर्व तो सत्तू को गठरी में बांधकर लंबी यात्रा पर ले जाया जाता था. ठेंठ देहातों में यह अभी भी जीवित है. सतुआन पर्व मेष संक्रांति के दिन पूर्वी यूपी-बिहार-झारखंड में खासकर मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है. यह आमतौर पर 14 अप्रैल को ही होता है. यह पर्व ऋतु परिवर्तन का प्रतीक भी माना जाता है, जो गर्मी के आ जाने की घोषणा करता है.

बंगाली समुदाय मनायेगा पोइला बोइशाख

बांग्ला कैलेंडर के अनुसार, साल का पहला दिन पोइला बोइशाख है. यह दिन बंगाली समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है. सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में रह रहे बंग समुदाय के लोग इस दिन को अपनी परंपरा संस्कृति में रमते हुए मनाते हैं. इस वर्ष 15 अप्रैल को पोइला वैशाख है. सुबह शंख ध्वनि के साथ घरों में पूजा-अर्चना, मंदिर दर्शन, दोपहर में परिवार-परिजनों के साथ भोजन और शाम में बांग्ला सांस्कृतिक अनुष्ठान इस दिन को खास बनाता है. इन्हीं सबों के बीच समुदाय के लोग बांग्ला नववर्ष का स्वागत भी करते हैं.

घर में बनाते हैं पारंपरिक खाना

फिजी में बंगाली समुदाय के लोग मिलकर मनाते हैं पोइला बोइशाख

अनिंदिता आचार्या पिछले कई वर्षों से फिजी में रह रही हैं. अनिंदिता का मायका साकची में है. उन्होंने बताया कि फिजी में रह रहे बंगाली समाज के लोग एक साथ पोइला बोइशाख मनाते हैं. इसकी तैयारी पहले ही कर लेते हैं. व्यवसायी अपने घर में हाल खाता का पूजन करते हैं. पारंपरिक खाना बनता है. इलिश मछली से लेकर मिष्टि दोई सभी कुछ यहां मिल जाता है. कीमत थोड़ी महंगी है. लेकिन, सभी के जिम्मे में होती है. बांग्ला सांस्कृतिक अनुष्ठान भी होता है, जिसमें सभी की हिस्सेदारी होती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

संबंधित खबर और खबरें

यहां जमशेदपुर न्यूज़ (Jamshedpur News) , जमशेदपुर हिंदी समाचार (Jamshedpur News in Hindi), ताज़ा जमशेदपुर समाचार (Latest Jamshedpur Samachar), जमशेदपुर पॉलिटिक्स न्यूज़ (Jamshedpur Politics News), जमशेदपुर एजुकेशन न्यूज़ (Jamshedpur Education News), जमशेदपुर मौसम न्यूज़ (Jamshedpur Weather News) और जमशेदपुर क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर.

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version