जमशेदपुर: पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ हाथियों को गांवों में प्रवेश करने से रोकेगा बांस का बखार, दलमा की तराई में की गयी है खेती

जमशेदपुर के दलमा की तराई में बांस की खेती की गयी है. पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ हाथियों को गांवों में प्रवेश करने से बांस का बखार रोकेगा.

By Guru Swarup Mishra | June 1, 2024 10:10 PM
an image

जमशेदपुर, संजीव भारद्वाज: पूर्वी सिंहभूम के एमजीएम, डिमना वन प्रमंडल में बड़ी भूमि पर बांस का बखार लगाया जा रहा है. बंसकरील बांस के बखार में अंकुरित होने वाले नये पौधे को कहा जाता है, प्रारंभ में जब यह जमीन के अंदर से निकलता है, तब यह काफी कोमल होता है. बाजार में यह 100 से 150 रुपए किलो बिकता है. हरा सोना के नाम से मशहूर बांस की फसलों को खेत में बार-बार तैयार करने की नौबत नहीं आती है. वहीं, विशेष देखरेख की भी जरूरत नहीं पड़ती है. इन्हीं गुणों के कारण किसान बांस की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इसका उपयोग लोग तरह-तरह के व्यंजन और अचार बनाने में करते हैं. बांस का यह बखार जंगली हाथियों को गांवों में प्रवेश से रोकेगा. इससे जानमाल की हानि नहीं होगी. बांस की खेती खूब बारिश वाले इलाकों के साथ-साथ कम बारिश वाले इलाके में भी होता है. यही कारण है कि पिछले दो साल से कोल्हान प्रमंडल क्षेत्र में अच्छी बारिश नहीं होने से क्षेत्र के किसान बांस की फसल के पैदावार पर अधिक जोर देने लगे हैं.

हाथियों का है संरक्षण क्षेत्र
दलमा कहें या पूरा पूर्वी सिंहभूम, यह हाथियों का संरक्षण क्षेत्र है. इसलिए हर साल सैकड़ों की संख्या में हाथियों का झुंड ओडिशा बंगाल से इस क्षेत्र में भ्रमण के लिए खाने की तलाश में आता है. खाने की तलाश में हाथी खेत खलियान को नुकसान तो पहुंचाते ही हैं साथ ही कई घरों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं. हाथियों को भगाने के चक्कर में कई लोगों की मौत भी हो चुकी है. अपनी जान की सुरक्षा के लिए हाथी इधर भटक कर खुद की जान बचाने के चक्कर में अपनी जान गंवा चुके हैं.

बांस की खेती की बनी योजना
हाथियों और हाथियों से मनुष्य और जान माल की सुरक्षा को लेकर वन विभाग और पर्यावरण विद् काफी गंभीर है. पूर्वी सिंहभूम जिला वन विभाग ने इसको लेकर बांस की खेती की योजना बनायी है. बांस की खेती से न केवल हाथियों को गांव में प्रवेश से रोका जाएगा बल्कि यह बांस स्थानीय लोगों के रोजगार और स्वरोजगार का माध्यम भी बनेगा. बांस के पौधे घनेदार वृक्ष का आकार लेते और हाथियों का सबसे पसंदीदा आहार भी यही होता है. ऐसे में बांस की खेती चौतरफा लाभ देने जा रहा है.

हरा सोना के नाम से मशहूर है बांस की खेती
बांस की खेती को यूं ही हरे सोने की खेती नहीं कहा जाता. बांस को न केवल लगाना आसान है बल्कि एक बार लगा देने के बाद यह खुद ही बार-बार फसल देता है. आज की तारीख में बांस से सैकड़ों प्रकार के उत्पादन तैयार किये जाते हैं, जिनकी मांग और कीमत बाजार में बहुत अच्छी है.

दलमा के तराई क्षेत्र में होती है बांस की खेती
बहरागोड़ा चाकुलिया के बाद दलमा के तराई क्षेत्र डिमना में 75 हजार, मिर्जाडीह में 40 हजार, लायलम का टोला में 10 हजार, लायलम टोला करगडीह में 10, नूतनडीह में 10 हजार, सारी में 8 हजार, पुनसा में दो हजार से अधिक बांस के पौधे लगाये गये हैं. आसपास के गांव में वन विभाग ने बांस की खेती करने की योजना बनायी है. इनके तैयार होने पर इन्हें शहर के वैसे मार्ग, जहां से हाथी जंगल से प्रवेश करते हैं, वहां लगाया जायेगा. बांस यदि बच गये तो इसका लाभ गांववालों को मिलेगा, हाथी अगर खा गये तो वहां से वे लौट जायेंगे, जिससे शहर में उनके प्रवेश का मार्ग भी अवरुद्ध होगा. बांस के बखार के तहत बांस संरक्षण से एक ओर वन विभाग को जंगली बांस मिलेगा, वहीं जंगली हाथियों को वन में आसानी से भोजन उपलब्ध हो सकेगा. यह पर्याववण के लिए काफी उपयोगी होगा. हाल के महीनों में क्षेत्र में जंगली हाथियों के आगमन में वृद्धि चिंता का विषय बना हुआ है. बांस के बखार लगा दिये जाने से जब ये बड़ा आकार ले लेंगे तो जंगली हाथियों का झुंड भोजन की तलाश में गांवों की ओर विचरण नहीं करेगा. जंगली हाथियों का प्रिय भोजन बांस होता है और यह वन में आसानी से मिल जाये, तो जंगली हाथी गांवों का रुख नहीं करेंगे. पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत बहरागोड़ा, चाकुलिया और बरसोल का बांस देशभर में अपनी गुणवत्ता और टिकाउपन के लिए मशहूर है. हर साल ट्रकों में भरकर यहां का बांस देश के कोने-कोने में भेजा जाता है. बहरागोड़ा की बड़ी आबादी बांस के व्यवसाय पर निर्भर है.

बांस है नकदी फसल
बता दें कि पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत चाकुलिया, बहरागोड़ा और बरसोल में बांस की व्यापक पैमाने पर खेती होती है. बांस की खेती में नकदी फसल वाली सारी खूबियां मौजूद है. साल के नौ महीने लोग बांस को बेचते हैं. दो से तीन साल में बांस के पौधे तैयार हो जाते हैं. चाकुलिया में कई लाइसेंसी डिपो हैं. इसके अलावा छोटे-मोटे 45 से अधिक सब डिपो हैं, जहां छोटे-छोटे व्यापारी ग्रामीणों से बांस संग्रह करते हैं. बांस की कोपले निकलने पर किसान दो से तीन महीने तक बांस कटाई बंद कर देते हैं. बहरागोड़ा क्षेत्र में ढाई हजार से भी अधिक लोग बांस के व्यवसाय पर निर्भर हैं.

ऐसे लाभान्वित होंगे स्थानीय ग्रामीण
बांस 7 से 9 माह में तैयार हो जाता है. अगर वन विभाग अभी इसके पौधे लगाता है अगले वर्ष फरवरी मार्च में बांस पूरी तरह से तैयार हो जाएगा. वन विभाग योजना है कि इन बांसों की कटाई कर इसके विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाएंगे. इसके लिए वन विभाग स्थानीय लोगों को ही प्रशिक्षित करके उन्हें इस काम में लगाएगा. इससे स्थानीय लोगों को बड़ी आसानी से अपने ही गांव में रोजगार मिल पाएगा. साथी यहां से तैयार उत्पाद जब दूसरे शहर और राज्य में बिक्री के लिए भेजे जाएंगे तो इस क्षेत्र को एक नई पहचान मिलेगी.

Also Read: जमशेदपुर के बीरप्रताप मुर्मू में पर्यावरण संरक्षण का जुनून ऐसा कि डुंगरी पर 12 हजार से अधिक पौधे लगाकर ला दी हरियाली

संबंधित खबर और खबरें

यहां जमशेदपुर न्यूज़ (Jamshedpur News) , जमशेदपुर हिंदी समाचार (Jamshedpur News in Hindi), ताज़ा जमशेदपुर समाचार (Latest Jamshedpur Samachar), जमशेदपुर पॉलिटिक्स न्यूज़ (Jamshedpur Politics News), जमशेदपुर एजुकेशन न्यूज़ (Jamshedpur Education News), जमशेदपुर मौसम न्यूज़ (Jamshedpur Weather News) और जमशेदपुर क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर.

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version