रांची. सामाजिक समानता की वकालत करना प्रगतिशील साहित्य आंदोलन का उद्देश्य रहा है. प्रलेस की स्थापना का उद्देश्य सामाजिक बुराइयों का अंत करना था और इस दिशा में प्रगतिशील साहित्य आंदोलन अग्रसर है. प्रलेस हमेशा से प्रेमचंद के दिखाये गये रास्ते में चला है. यह बात कथाकार रणेंद्र ने कही. श्री रणेंद्र मंगलवार को डॉ राम दयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के 90वें स्थापना दिवस समारोह में बोल रहे थे. इस मौके पर प्रगतिशील आंदोलन और साहित्यिक विषयक परिचर्चा एवं बहुभाषीय काव्य पाठ का आयोजन किया गया.
साहित्यकारों ने प्रगतिशीलता को महत्व दिया
मौके पर कहानीकार पंकज मित्र ने कहा कि जन सामान्य के सुख-दुख एवं आकांक्षाओं को प्रलेस के माध्यम से अभिव्यक्त करने की कोशिश हमेशा की गयी है. प्रेमचंद से लेकर अभी तक के साहित्यकारों ने प्रगतिशीलता को महत्व दिया है. आलोचक प्रो मिथिलेश कुमार सिंह ने कहा कि आज संपूर्ण देश में प्रलेस की शाखाएं हैं. आज के समय में लेखकों की चुनौतियां बढ़ गयी हैं. प्रलेस का दायित्व रहा है कि वह समाज में प्रगतिशील तत्वों की तलाश करे.
बहुभाषी काव्य-पाठ का आयोजन
डॉ जिंदर सिंह मुंडा ने कहा कि सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिवर्तन की महत्वपूर्ण भूमिका प्रगतिशील साहित्य आंदोलन ने निभायी है. इस अवसर पर बहुभाषीय काव्य-पाठ में खोरठा के कवि अरविंद ,कंचन, कुड़ुुख में प्रेमचंद उरांव, कुरमाली में जयंती कुमारी, नागपुरी में आलम आरा एवं हिंदी में रश्मि शर्मा, पार्वती तिर्की, प्रज्ञा गुप्ता, सत्या शर्मा, जयमाला, संगीता कुजारा, नंदा पांडेय ने काव्य पाठ किया. इस अवसर पर कमल, निशिप्रभा, डॉ भारती, सुषमा सिन्हा, अजय, विजय, मनीष मिश्र आदि उपस्थित थे.
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