रांची. पूर्व विधायक डॉ लंबोदर महतो ने रांची विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर कुरमाली भाषा में पीएचडी कराये जाने की मांग की है. डॉ लंबोदर ने कुलपति को लिखे पत्र में कहा है कि इस विषय में शिक्षक नहीं होने के कारण छात्रों को परेशानी हो रही है. छात्र हित में कुरमाली भाषा में नेट-जेआरएफ पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण छात्रों को मानविकी संकाय (संस्कृत, हिंदी व दर्शनशास्त्र) विषयों के शिक्षकों के निर्देशन में पीएचडी शोध कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है. कुरमाली भाषा साहित्य में नेट-जेआरएफ पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण छात्रों को पीएचडी में पंजीकरण कराने में आ रही विसंगतियों के कारण कई छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है. वर्तमान में झारखंड में केवल रांची विवि और श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि में ही कुरमाली भाषा में पीएचडी शोध कार्य संचालित हो रहा है. चूंकि कुरमाली राज्य की क्षेत्रीय भाषा है, इसलिए नेट-जेआरएफ परीक्षा उत्तीर्ण छात्र देश के अन्य विवि में जाकर कुरमाली भाषा में पीएचडी शोध करने में अक्षम हैं. वर्तमान में झारखंड में कुरमाली भाषा के केवल दो ही नियमित शिक्षक हैं, जिसमें से अभी केवल एक ही शिक्षक पीएचडी शोध कार्य कराने के लिए योग्य हैं. जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय को मानविकी संकाय से अलग कर दिया गया है. तब से कुरमाली भाषा के शोध छात्र मानविकी (संस्कृति और हिंदी) के शोध निर्देशकों के अंतर्गत पीएचडी में पंजीयन करने में असमर्थ हैं. उन्होंने कहा कि पहले संस्कृत और हिंदी विषयों के शिक्षक/ शिक्षिकाओं के शोध निर्देशन में कुरमाली भाषा के छात्र पीएचडी शोध कार्य करते थे, जिससे उनका भविष्य प्रभावित नहीं होता था.
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