वे रोजाना झूंड की शक्ल में शहर में दाखिल होते हैं. फिर शहर के हर चौराहे पर खड़े हो जाते हैं. उनके हाथ में फावड़ा है, दरांती है. खुरपी है. गैंती है. किसी-किसी के पास खिड़कियां और दरवाजे बनाने का सामान है तो किसी के हाथ में इमारत बनाने के सामान. वे शिल्पकार हैं. लेकिन इस समय रोजाना धूप में खड़े रहते हैं. पसीने से तर काम की तलाश में वे घंटों खड़े रहते हैं. लेकिन काम मिलता नहीं है. सवाल है कि कौन हैं ये लोग. ये लोग प्रवासी मजदूर हैं. लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों से वापस लौटे प्रवासी मजदूर.
Posted By- Suraj Kumar Thakur
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