खेल के क्षेत्र में जब हॉकी और फुटबॉल की बात होती है तो राष्ट्रीय नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झारखंड का नाम सामने आता है. यहां की बेटियों ने जहां हॉकी में पूरी दुनिया को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है, वहीं फुटबॉल में भी अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी है. इनकी इसी प्रतिभा के कारण भारतीय टीम में भी इन्हें जगह मिली है. फुटबॉल का क्रेज भी लगातार बढ़ रहा है. ऐसा ही फुटबॉल का क्रेज झारखंड के रांची जिले के एक गांव चारीहुजीर में है. ये झारखंड का इकलौता गांव है, जहां हर घर की एक बेटी फुटबॉल खेलती है और झारखंड से लेकर भारतीय टीम में अपनी जगह भी बना चुकी है. यहां की बेटियां को देखकर यहां के लड़के भी फुटबॉल के अभ्यास में जुट गये हैं. दस साल पहले शुरू हुआ था प्रयास : चारीहुजीर गांव के मैदान में सुबह और शाम 250 से 300 बालिका फुटबॉलर अभ्यास करती दिख जाती हैं. इसकी शुरुआत 10 साल पहले 2013 में हुई थी. फुटबॉल के कोच आनंद गोप ने बताया कि शुरुआत यहां 15 लड़कियों से हुई थी. उस दौरान जब अभ्यास के लिए ये मैदान में आती थी तो लड़के इनका मजाक उड़ाते थे. गांव के कुछ लोगों को भी आपत्ति थी कि लड़कियों हाफ पैंट पहनकर कैसे फुटबॉल खेलेंगी. इसके बाद मैंने गांव के लोगों से बात की और उन्हें इस खेल के बारे में समझाया. इसमें मुझे छह महीने लग तब जाकर गांव के लोग राजी हुए. धीरे-धीरे लड़कियां मैदान में आने लगी. इसके बाद झारखंड फुटबॉल टीम में जब चार से पांच लड़कियों का चयन हुआ. वो राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता खेल कर जब गांव लौटी तो लोग उनके और गांव के बारे में जानने लगे. इसके बाद प्रत्येक घर के लोगों ने अपनी बेटियों को फुटबॉल खेलने के लिए भेजना शुरू किया. आज यहां 250 से 300 बालिका फुटबॉल अभ्यास करती हैं. वहीं अंशु कच्छप और नेहा कुमारी के आइकॉन बनने के बाद फुटबॉल का क्रेज और भी बढ़ गया.
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