रांची. जेवीएम श्यामली में स्पिक मैके द्वारा आयोजित पांच दिवसीय मधुबनी पेंटिंग कार्यशाला शनिवार को संपन्न हो गयी. इसमें कक्षा छह से 12वीं तक के विद्यार्थियों ने भाग लिया. मधुबनी पेंटिंग से परिचय, शैलियां, प्रतीक चिह्नों, डिजाइनों की मूल बातें, चिह्नों और डिजाइनों की आकृति बनाने में उपयोग, विधियां और बारीकियों के बारे में विस्तार से जाना. कार्यशाला में 35 छात्रों ने अपनी तूलिका से रंग भरे और चित्र उकेरे. सभी छात्रों द्वारा बनायी गयी मधुबनी पेंटिंग सभागार में प्रदर्शनी में लगायी गयी. मुख्य अतिथि निवेदिता शर्मा ने कहा कि सर्वप्रथम मधुबनी कला में चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाया था. अपने असली रूप में तो ये चित्रकला गांवों में मिट्टी में लेपी गयी झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर बनाने का प्रचलन हो गया है. चित्रों की विषय वस्तु प्रकृति, पौराणिक कथा, आदिवासी रूपांकन सहित स्थानीय कहानियों के इर्द-गिर्द घूमती है. इन पेंटिंग में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है, जो काजल, सिंदूर, हल्दी, गोबर से तैयार किये जाते हैं. प्राचार्य समरजीत जाना ने कहा कि छात्रों के लिए यह शुरुआती स्तर की मधुबनी कार्यशाला कल्पनाओं को रंग देने और इस सुंदर कला को सीखने का सबसे अच्छा तरीका है. विद्यालय प्रबंधन सदैव ही देश की पारंपरिक विरासतों को संरक्षित करने के साथ-साथ आनेवाली पीढ़ियों को इनसे परिचित कराने तथा इसका ज्ञान देने का पक्षधर रहा है. अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना तथा उसका प्रचार-प्रसार करना नवीन शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य भी है. मिथिला क्षेत्र की यह प्रतिनिधि कला नि:संदेह अनुकरणीय है. इस अवसर पर लिली मुखर्जी, निवेदिता शर्मा, शिवेंदु मोहन शर्मा, रणधीर कुमार शर्मा, सुनील कुमार गुप्ता उपस्थित थे.
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