आदिवासियों को राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए बनायी पार्टी
रांची से सटे खूंटी जिला (Khunti District) में 3 जनवरी, 1903 को आदिवासी परिवार में जन्म लेने वाले जयपाल सिंह मुंडा ने रांची और इंगलैंड से पढ़ाई की थी. उन्होंने संसद में आदिवासियों की आवाज बुलंद की थी. झारखंड राज्य के गठन का सपना सबसे पहले जयपाल सिंह मुंडा ने ही देखा था. जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासियों को राजनीति में भागीदारी दिलाने की भी पहल की थी. उन्होंने 1948 में आदिवासी लेबर फेडरेशन (Adivasi Labour Federation) की स्थापना की, ताकि आदिवासियों को राजनीति में सक्रिय किया जा सके.
पहले ही चुनाव में झापा के 32 विधायक और 4 सांसद चुने गये
इसी उद्देश्य से 1 जनवरी 1950 को जयपाल सिंह मुंडा ने अखिल भारतीय आदिवासी सभा (Akhil Bharatiya Adivasi Sabha) को झारखंड पार्टी (Jharkhand Party) में परिवर्तित कर दिया. आजाद भारत में पहली बार चुनाव हुआ, तो उन्होंने झारखंड पार्टी के टिकट पर अपने उम्मीदवार उतारे. देश के इस पहले ही चुनाव में उनकी पार्टी के प्रदर्शन से राजनीतिक दलों में खलबली मच गयी. बिहार में जयपाल सिंह मुंडा की अगुवाई वाली झारखंड पार्टी के टिकट पर 4 सांसद चुन लिये गये. विधानसभा में उनकी पार्टी के 32 लोग जीतकर पहुंचे.
Also Read: सुभाष चंद्र बोस ने जयपाल सिंह मुंडा से मांगी थी मदद, जयपाल सिंह ने भेजा ये संदेश
1962 में पार्टी का प्रदर्शन रहा खराब
जयपाल सिंह मुंडा की पार्टी का प्रदर्शन यहीं नहीं थमा. वर्ष 1957 में जब अगला चुनाव हुआ, तो उनके सांसदों और विधायकों की संख्या पिछली बार की तुलना में अधिक हो गयी. इस बार उनकी पार्टी से 34 विधायक चुने गये. सांसदों की संख्या भी 4 से बढ़कर इस बार 5 हो गयी. लेकिन सन् 1962 के चुनाव में झारखंड पार्टी अपना प्रदर्शन बरकरार नहीं रख पायी. हालांकि, उसके सांसदों की संख्या में कोई गिरावट नहीं आयी, लेकिन विधायकों की संख्या काफी घट गयी. इस बार उसकी पार्टी के मात्र 22 उम्मीदवार विधायक बन पाये. सांसदों की संख्या इस बार भी 5 ही रही.
झारखंड राज्य के लिए झापा का कांग्रेस में कर दिया विलय
सन् 62 के चुनाव के बाद झारखंड पार्टी में भगदड़ मच गयी. जयपाल सिंह मुंडा ने अगले ही साल यानी वर्ष 1963 में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने उन्हें आश्वस्त किया है कि अगर वह अपनी पार्टी का इस राष्ट्रीय पार्टी में विलय कर देते हैं, तो वह अलग झारखंड राज्य का गठन करेगी. झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय करने के बाद जयपाल सिंह मुंडा को बिहार का उप-मुख्यमंत्री बना दिया गया. वह बिहार के पहले आदिवासी उप-मुख्यमंत्री थे.
बिहार के उप-मुख्यमंत्री पद से जयपाल सिंह मुंडा ने दिया इस्तीफा
अलग झारखंड राज्य का सपना देख रहे बिहार के उप-मुख्यमंत्री जयपाल सिंह मुंडा ने एक महीने बाद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस ने अलग झारखंड राज्य के गठन का अपना वादा पूरा नहीं किया. इसके साथ ही जयपाल सिंह मुंडा का कांग्रेस से मनमुटाव बढ़ता चला गया. सन् 67 के संसदीय चुनाव में जयपाल सिंह मुंडा ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और सांसद चुन लिये गये. इसके बाद तो कांग्रेस से उनकी दूरी और बढ़ती ही चली गयी.
Also Read: जयपाल सिंह मुंडा ने हॉकी के लिए छोड़ दी आइसीएस की नौकरी, फिर ऐसे बने थे आदिवासियों की आवाज
कांग्रेस में झारखंड पार्टी के विलय को बताया सबसे बड़ी भूल
एक वक्त ऐसा भी आया, जब जयपाल सिंह मुंडा ने सरेआम स्वीकार किया कि झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय करना उनकी बड़ी भूल थी. 13 मार्च, 1970 को उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने धोखा दिया. झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय करना मेरी सबसे बड़ी भूल थी. मैं झारखंड पार्टी में लौटूंगा और अलग झारखंड राज्य के लिए नये सिरे से आंदोलन करूंगा. इस घोषणा के एक सप्ताह बाद 20 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा का दिल्ली में निधन हो गया.