क्यों किया गया था वोट बहिष्कार का फैसला
वहां की बीएलओ ने कहा कि लोगों में मतदान को लेकर अच्छा उत्साह था. संयमित होकर मतदान कर रहे थे. असल में इस गांव के लोगों ने एक सप्ताह पहले ही मतदान बहिष्कार करने का निर्णय लिया था. घरों से बाहर निकलकर जुलूस निकाला था. उनका कहना था कि सरकार ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया है. उनकी जमीन का उचित मुआवजा नहीं दिया गया है. यहां के बूथ संख्या 227 पर 76 फीसदी और 226 पर 79 फीसदी मतदान हुआ.
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वर्तमान दर पर मुआवजा मांग रहे ग्रामीण
रांची के नगड़ी गांव के अखरा में रविवार को प्रो दासो कच्छप की अध्यक्षता में ग्राम सभा की गयी थी. इसमें नगड़ी गांव के लगभग तीन सौ महिला, पुरुष और रैयतों ने हिस्सा लिया था. ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि 13 नवंबर को होनेवाले विधानसभा चुनाव में वे वोट का बहिष्कार करेंगे. उनका कहना था कि संयुक्त बिहार के समय नगड़ी मौजा की 227 एकड़ जमीन का अधिग्रहण बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए ली गयी थी. नगड़ी के ग्रामीणों ने इसका विरोध कर मुआवजा राशि नहीं ली थी. नगड़ी के रैयत अपनी भूमि पर वर्षों से कृषि कार्य करते रहे हैं. झारखंड सरकार द्वारा वर्ष 2012 में पुनः नगड़ी चैरा की बीएयू के नाम से अर्जित भूमि बताकर इसमें रिंग रोड, आइआइएम, ट्रिपल आइटी और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए बाउंड्रीवाल करा दी गयी. नगड़ी के ग्रामीणों ने इसका विरोध कर रहे हैं. 67 एकड़ जमीन पर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और रिंग रोड का निर्माण कराया गया. रैयतों को अब तक इसका मुआवजा नहीं मिला है.
आगे मुद्दे पर बात करेंगे, हक मिलना जरूरी है
हुसीर के उप मुखिया कलीम अंसारी ने बताया कि यहां बुकरू और नगड़ी गांव का बूथ है. गांव के लोग परेशान हैं. इस कारण लोगों ने वोट बहिष्कार का निर्णय लिया था. लेकिन, लगता है कि जल्दबाजी में निर्णय लिया गया था. चुनाव से ठीक पहले करने से काम नहीं हो सकता है. आगे इस मुद्दे पर बात करेंगे. लोगों का हक जरूरी है.
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