घुरती रथयात्रा. बारिश भी नहीं रोक सकी श्रद्धालुओं का उत्साह, रथ खींचने के लिए उमड़ी भीड़
पूजा-अर्चना में रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय हुए शामिल
रांची. भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नौ दिनों के विश्राम के बाद रविवार को मौसीबाड़ी से अपने धाम लौट आए हैं. ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर परिसर और उसके रास्तों में जय जगन्नाथ की गूंज से वातावरण भक्तिमय हो गया. बारिश की फुहारों के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा था. न भीगने की चिंता, न रास्तों की परवाह. लगातार बारिश के बावजूद श्रद्धालुओं की संख्या में कोई कमी नहीं थी. बारिश के बावजूद रथ खींचने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ, पूर्व सांसद सुबोधकांत सहाय उपस्थित थे. जय-जय जगन्नाथ प्रभु के जयघोष के साथ शाम 4.00 बजे रथयात्रा मौसीबाड़ी से मुख्य मंदिर के लिए शुरू हुई. रथ खींचने की परंपरा में श्रद्धालुओं ने 11 कदम पदयात्रा को दोहराया. प्रत्येक 11 कदम पर रथ को रोककर भगवान जगन्नाथ का जयघोष किया गया. शाम 6.30 बजे रथ मुख्य मंदिर पहुंचा. अगले एक घंटे तक महिलाओं और अन्य श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के दर्शन किये. वहीं, श्री सुदर्शन चक्र, गरुड़ जी, लक्ष्मी नरसिंह, बलभद्र स्वामी, सुभद्रा माता और जगन्नाथ स्वामी को एक-एक कर रथ से मुख्य मंदिर में प्रवेश कराया गया. इससे पूर्व मौसीबाड़ी में सुबह 6.00 बजे आरती और सर्वदर्शन की परंपरा शुरू हुई. सुबह 8.00 बजे जगन्नाथ स्वामी को अन्न भोग लगाया गया. दोपहर 2.50 बजे पूजा संपन्न हुई. इसके बाद एक-एक कर सभी विग्रहों को रथ पर सवार कराया गया. सभी विग्रहों का शृंगार किया गया. दोपहर 3.05 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के बाद श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ हुआ. शाम चार बजे रथ को मौसीबाड़ी से प्रस्थान कराया गया.
मुख्य मंदिर के दरवाजे पर गुस्से में थी माता लक्ष्मी
रथ पर सवार जगन्नाथ स्वामी जैसे ही मंदिर पहुंचे, वहां माता लक्ष्मी से उनका साक्षात्कार हुआ. मुख्य मंदिर में माता लक्ष्मी का गुस्सा चरम पर था. प्रभु जगन्नाथ को देखते ही माता लक्ष्मी मुख्य द्वार पर खड़ी हो गयीं. माता लक्ष्मी के मनमुटाव का कारण था कि भगवान जगन्नाथ उन्हें छोड़कर मौसीबाड़ी चले गये थे. इसके बाद पारंपरिक विधि-विधान से मां लक्ष्मी की नाराजगी दूर की गयी. करीब एक घंटे के मान-मनौव्वल के बाद प्रभु जगन्नाथ को मुख्य मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिली. माता लक्ष्मी और भगवान जगन्नाथ की ओर से पुजारियों ने वाकयुद्ध किया. फिर एक-एक कर सभी विग्रहों की मांगल आरती की गयी.
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