रांची. जन संस्कृति मंच का 17वां दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन पुरुलिया रोड के एडीसी सभागार में सांस्कृतिक और संघर्ष की आवाज के साथ संपन्न हो गया. सम्मेलन का दूसरा दिन भी सांस्कृतिक विमर्श से शुरू होकर राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं के साथ समाप्त हुआ. रात के समंदर में गम की नाव चलती है, रात में सपने… दिन में जहर उगलती है सहित कई इंकलाबी गीत की प्रस्तुतियों के साथ चर्चा को आगे बढ़ाया गया. मौके पर इप्टा के शैलेंद्र ने कहा कि हमारे सोच विचार, व्यवहार को बाजार और कॉरपोरेट तय कर रहे हैं. इस बाजार की सत्ता को जुलूस से नहीं, बल्कि संस्कृति से लड़ा जा सकता है. उद्घाटन सत्र का संचालन प्रो आशुतोष ने किया. सामाजिक कार्यकर्ता नव शरण सिंह ने कहा कि उमर खालिद को फासीवादियों ने पांच साल से जेल में डाल रखा है, लेकिन हम उन्हें अपनी विरासत, आपसी मोहब्बत और एकता के सहारे परास्त कर सकते हैं. सम्मेलन में जसम के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविभूषण ने कहा कि 2014 से पहले स्वाधीन भारत में कभी विभाजनकारी शक्तियां इतनी प्रबल नहीं थीं. भाजपा को बहुमत मिलने के बाद इस देश में एक भी लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्था नहीं बची है जो स्वतंत्र है. डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार बीजू टोप्पो ने कहा कि झारखंड में विस्थापन विरोधी आंदोलनों का लंबा इतिहास रहा है जो बताता है कि यह संघर्ष की जमीन है. हमने जल, जंगल-जमीन और भाषा संस्कृति को बचाने की लड़ाई लड़ी है और अपने गीतों, कविताओं और नाटकों के माध्यम से फासीवाद से आज भी लड़ रहे हैं. सम्मेलन के दूसरे दिन भाकपा माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह, जसम के अनिल अंशुमन, प्रलेस के महादेव टोप्पो, एजाज अहमद, जम्मू विश्वविद्यालय के प्रो राशिद, संजय का, जलेस के एम जेड खान, प्रो उमा, प्रो सुधीर सुमन सहित बड़ी संख्या में देश भर से आए संस्कृति कर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी शामिल हुए.
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