खेमाशुली में कुड़मियों के रेल रोको-रास्ता रोको आंदोलन के लिए तंबू लगाने गए मजदूरों को पुलिस ने खदेड़ा

सितंबर 2022 और अप्रैल 2023 में कुड़मी संगठनों के हजारों लोगों ने 5 दिनों तक झारखंड-बंगाल में कई स्टेशनों पर धरना दिया था. दोनों बार रेलवे को तकरीबन 250 ट्रेनें रद्द करनी पड़ी थीं. इस बार 20 सितंबर से झारखंड के चार, बंगाल के दो और ओडिशा के दो स्टेशन पर हजारों लोग एक साथ रेल पटरियों पर डेरा डाल देंगे.

By Jaya Bharti | September 18, 2023 6:37 PM
feature

कुड़मी समाज के लोग आदिवासी का दर्जा मांग रहे हैं. इसके लिए कई बार आंदोलन हुए. रेल चक्का भी जाम किया गया. वार्ता के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया. अब फिर से आंदोलन की तैयारी चल रही है. 20 सितंबर से ‘रेल टेका, डहर छेका’ यानी रेल रोको-रास्ता रोको आंदोलन का ऐलान किया गया है. इसकी तैयारी में कुड़मी समाज के लोग जुट गए हैं. उनका दावा है कि गांव-गांव से हजारों कुड़मी आएंगे और रेल पटरी को जाम किया जाएगा. इसके लिए बाकायदा पंडाल बनाने की तैयारी है. दूसरी तरफ, प्रशासन इस आंदोलन को हर हाल में रोकने के लिए तैयार है. खेमाशुली में रेल पटरी और सड़क के आसपास पंडाल बनाने के लिए पहुंचे कुड़मी समाज के लोगों को पुलिस ने सोमवार (18 सितंबर) को खदेड़ दिया. कुड़मी समाज का कहना है कि इस बार कुड़मियों को आदिवासी यानी अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने का लिखित आश्वासन मिलने के बाद ही वे अपना आंदोलन खत्म करेंगे.

कुड़मी को आदिवासी का दर्जा आदिवासियों के अस्तित्व पर हमला

कुड़मी समाज ने दावा किया है कि जब तक केंद्रीय गृह मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय कुड़मी को एसटी का दर्जा देने का लिखित आश्वासन नहीं देगा, उनका आंदोलन खत्म नहीं होगा. बंगाल, झारखंड और ओडिशा के हजारों कुड़मी रेल और सड़क मार्ग को बाधित कर वहां पर डटे रहेंगे. एक ओर कुड़मी समाज के लोग आदिवासी का दर्जा मांग रहे हैं, तो दूसरी तरफ आदिवासियों के संगठन कुड़मियों की इस मांग पर विरोध कर रहे हैं. आदिवासी संगठनों का कहना है कि कुड़मियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा आदिवासियों के अस्तित्व पर हमला है. उधर, रेलवे ने कहा है कि वह अलर्ट मोड में है. अभी तक रेलवे की तरफ से कोई आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया है. सभी कर्मचारी अलर्ट मोड में हैं.

सितंबर व अप्रैल में रेलवे को रद्द करनी पड़ी थी 250 ट्रेनें

कुड़मियों ने इसके पहले दो बार और आंदोलन किया था. पहली बार पिछले साल सितंबर में और उसके बाद अप्रैल 2023 में. इसमें लगातार पांच दिनों तक कुड़मी समाज के लोगों ने झारखंड और बंगाल में कई स्टेशनों पर धरना दिया था, जिसकी वजह से ट्रेनों का आवागमन ठप हो गया था. दो बार हुए आंदोलन में करीब 250 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा था. कुड़मियों के आंदोलन की वजह से सबसे ज्यादा असर हावड़ा-मुंबई रूट की ट्रेनों पर पड़ा था. नेशनल हाईवे-49 को भी ठप कर दिया गया था. सैकड़ों ट्रेनें और हजारों वाहन जहां-तहां फंस गए थे.

इस बार क्या करेंगे कुड़मी संगठन

कुड़मी समाज का नेतृत्व करने वाले संगठनों ने आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार कर ली है. उनका कहना है कि इस बार झारखंड में चार स्टेशनों पर वे डेरा डालेंगे. इसमें मनोहरपुर, नीमडीह, गोमो और मुरी स्टेशन शामिल हैं. पश्चिम बंगाल के कुस्तौर एवं खेमाशुली स्टेशन के साथ-साथ ओडिशा के रायरंगपुर एवं बारीपदा स्टेशन पर हजारों लोग रेल पटरियों पर बैठ जाएंगे. इतना ही नहीं, इन इलाकों से गुजरने वाले सभी एनएच को भी अचल कर दिया जाएगा. आंदोलन में झारखंड, बंगाल एवं ओडिशा के गांव-गांव से कुड़मी जाति के लोग जुटेंगे. कहा गया है कि इस बार आंदोलन अनिश्चितकाल तक जारी रहेगा. इसकी तैयारी चल रही है. गांव-गांव में घूमकर एक-एक मुट्ठी चावल और यथासंभव चंदा जुटाया जा रहा है.

कुड़मी समाज के लोग क्यों कर रहे आंदोलन?

बड़ा सवाल है कि कुड़मी समाज के लोग आंदोलन क्यों कर रहे हैं? वह आदिवासी का दर्जा क्यों मांग रहे हैं? इसके जवाब में कुड़मी समाज का कहना है कि वर्ष 1931 तक कुड़मी भी मुंडा, मुंडारी, संताली के साथ आदिम जनजाति (प्रिमिटिव ट्राइब) था. देश आजाद हुआ, तो छह सितंबर 1950 को संसद में जनजातियों की सूची पेश की गई, उससे कुड़मी का नाम हटा दिया गया. उस वक्त संसद में 15 कुड़मी सांसद थे. उन्होंने इसका विरोध किया. लेकिन, उनके विरोध को अनसुना कर दिया गया. कुड़मियों का दावा है कि साजिश के तहत उनको आदिवासियों की सूची से बाहर किया गया. इनका यह भी कहना है कि वर्ष 2004 में झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कुड़मी जाति को आदिवासी बनाने की अनुशंसा की थी. अब वह केंद्र में जनजातीय मामलों के मंत्री हैं. वही राज्यों से ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीआरआई) की रिपोर्ट मांग रहे हैं. केंद्र सरकार टीआरआई की रिपोर्ट के नाम पर हमें उलझा रही है. इस बार झांसे में नहीं आएंगे.

आदिवासी समाज कतई बर्दाश्त नहीं करेगा

कुड़मियों की इस मांग से आदिवासी समाज भी उद्वेलित है. उनको कुड़मियों को एसटी का दर्जा देने पर सख्त ऐतराज है. यूनाइटेड फोरम ऑफ ऑल आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन के नेता सिद्धांत माडी कहते हैं कि कुड़मियों की यह मांग आदिवासियों की पहचान पर हमला है. कुड़मी परंपरागत तौर पर हिंदू हैं. वे गलत तरीके से खुद को आदिवासी का दर्जा देने का दबाव सरकारों पर बना रहे हैं. अगर कुड़मियों को आदिवासी का दर्जा मिला, तो हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे.

Also Read: कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने के लिए फिर शुरू हो रहा आंदोलन, 20 सितंबर से प्रभावित हो सकती हैं इतनी ट्रेनें

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version