आंखों में आंसू, हाथों में टूटी उम्मीदें: देखिए कैसे उजड़ गया जंगपुरा का मद्रासी कैंप

DELHI NEWS: दिल्ली के जंगपुरा स्थित मद्रासी कैंप में 60 साल से रह रहे 370 परिवारों की झुग्गियों पर बुलडोजर चला दिया गया. कोर्ट आदेश के तहत की गई इस कार्रवाई में 155 परिवारों को पुनर्वास नहीं मिला. कई लोग बेघर, बेरोजगार और असहाय हो गए हैं.

By Abhishek Singh | June 1, 2025 6:07 PM
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DELHI NEWS: दिल्ली के जंगपुरा स्थित मद्रासी कैंप की तंग गलियों में रविवार सुबह एक ऐसी उदासी फैली, जिसकी गूंज बुलडोज़रों की गर्जना से भी तेज़ थी. 370 झुग्गी-झोपड़ियों की यह बस्ती, जहां लोग 60 वर्षों से जीवन बसर कर रहे थे, अब सिर्फ मलबे में तब्दील हो चुकी है. कई परिवारों के लिए यह सिर्फ घर नहीं था, बल्कि उनकी पूरी जिंदगी का आशियाना था, जिसे देखते ही देखते जमींदोज कर दिया गया.

कोर्ट के आदेश पर चली कार्रवाई, लेकिन इंसानियत पर सवाल

बारापुला नाले की सफाई और मानसून में जलभराव रोकने के मकसद से दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर यह कार्रवाई की गई. लेकिन सवाल उठता है कि क्या सिर्फ बाढ़ से बचने के लिए हज़ारों लोगों को बेघर कर देना इंसाफ है?

दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) और डीडीए (DDA) की इस कार्रवाई में 370 में से 215 परिवारों को पुनर्वास के लिए उपयुक्त माना गया. उन्हें दिल्ली के बाहरी क्षेत्र नरेला में फ्लैट आवंटित किए गए, जो यहां से करीब 40 किलोमीटर दूर है. लेकिन बचे हुए 155 परिवारों को किसी भी तरह का पुनर्वास नहीं मिला. अब उनके पास न कोई घर है, न कोई विकल्प.

काम पर क्यों नहीं आई?

155 में से एक महिला पुष्पा बताती हैं कि जब उनका घर तोड़ा जा रहा था, वह अपने बर्तनों को समेट रही थीं. इसी बीच उनके काम की जगह से बार-बार कॉल आ रही थी — “काम पर क्यों नहीं आई?”
पुष्पा का सवाल था, “जब सिर पर छत नहीं है, तब बर्तन धोने कौन जाएगा?”
उनका दर्द सिर्फ उनका नहीं, बल्कि उन सैकड़ों औरतों और बच्चों का है जो अपने घर टूटते हुए देखने को मजबूर हुए.

वोट नहीं दिया, इसलिए घर नहीं मिला?

कुछ परिवारों ने दावा किया कि उन्हें सिर्फ इसलिए पुनर्वास नहीं मिला क्योंकि उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट नहीं दिया था.
55 वर्षीय रानी बताती हैं कि उन्हें तमिलनाडु जाना पड़ा था अपनी बीमार मां के पास, इसलिए वोट नहीं दे पाईं. क्या वोट न देने की सजा घर छीन लेना है?

नरेला में नया घर, लेकिन रोज़गार कहां?

जिन परिवारों को नरेला भेजा गया है, वे भी खुश नहीं हैं. वहां न कोई घरेलू काम का अवसर है, न ही जरूरी सुविधाएं.
पुष्पा कहती हैं, “हम जिन पॉश कॉलोनियों में बर्तन-कपड़े का काम करते थे, वे जंगपुरा में थीं। नरेला में हमें कौन काम देगा?”

CPI (M) की दिल्ली यूनिट ने इस कार्रवाई की निंदा करते हुए सभी प्रभावित परिवारों के लिए निष्पक्ष और समुचित पुनर्वास की मांग की है. उन्होंने यह भी कहा कि नरेला में दी गई फ्लैटों में पानी-बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है.

पुनर्वास की प्रक्रिया और लचर प्रणाली

DUSIB के अनुसार, प्रारंभिक सर्वे में 189 परिवारों को पात्र माना गया था. बाद में 26 और जोड़े गए, लेकिन अब भी 150 से ज्यादा परिवार बेघर हैं. कई शिकायतों की अभी समीक्षा की जा रही है, लेकिन जिनके सिर पर अब छत नहीं बची, उनके लिए ये शब्द सिर्फ दिलासा हैं, समाधान नहीं.

बारापुला की बाढ़ बनाम बस्तियों की बर्बादी

बारापुला नाला दिल्ली का प्रमुख स्टॉर्म वॉटर ड्रेन है, लेकिन अतिक्रमण और अराजक निर्माणों ने इसकी जल निकासी क्षमता कम कर दी है. हाईकोर्ट ने 2023 में आदेश दिया था कि मानसून से पहले इन्हें हटाया जाए. लेकिन यह कार्रवाई कितनी मानवीय थी, यह बहस का विषय बन गया है.

इस कार्यवाही पर लोग सवाल खड़े कर रहे हैं

1-: क्या वोट न देना पुनर्वास से वंचित होने का कारण हो सकता है?

2-: क्या सिर्फ मानसून में जलभराव रोकने के लिए हज़ारों की बस्तियों को उजाड़ देना उचित है?

3-: क्या नरेला में जीवन की मूलभूत सुविधाओं के बिना विस्थापन एक न्यायसंगत कदम है?

जवाब चाहे जो भी हों, लेकिन मद्रासी कैंप की टूटी दीवारें और भीगी आंखें इस बात की गवाही हैं कि किसी का घर उजड़ता है, तो सिर्फ ईंट और मिट्टी नहीं गिरती — सपने, रिश्ते और जिंदगियां भी टूटती हैं.

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