2015-18 के बीच दर्ज हुआ था मुकदमा
यह पूरा घोटाला उन राशन डीलरों (कोटेदारों) की मिलीभगत से सामने आया, जिन्होंने बीपीएल श्रेणी के गरीब परिवारों के लिए आवंटित खाद्यान्न को हड़प लिया. जब इसकी शिकायतें लगातार शासन स्तर तक पहुंचीं, तो सरकार ने कार्रवाई करते हुए वर्ष 2015 से 2018 के बीच बरेली, आगरा और मेरठ मंडलों में मुकदमे दर्ज कराए. शुरुआत में जांच की जिम्मेदारी आर्थिक अपराध शाखा (EOW) को सौंपी गई थी, लेकिन सालों तक इसमें कोई खास प्रगति नहीं हुई. लिहाजा फरवरी 2024 में सरकार ने सभी मामलों को अपराध अनुसंधान विभाग (CID) को ट्रांसफर कर दिया गया था.
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कैसे हुआ घोटाला?
जांच में सामने आया कि खाद्य विभाग के अधिकारियों और राशन डीलरों की मिलीभगत से वास्तविक लाभार्थियों के बजाय दूसरे लोगों के आधार नंबर सिस्टम में अपलोड कर दिए गए. इससे सालों तक असली लाभार्थी राशन से वंचित रहे और फर्जी लाभार्थी सरकारी राशन उठाते रहे. इस दौरान शासन को भेजी गई रिपोर्टों में वास्तविक लाभार्थियों के नाम दिखाकर घोटाले को छिपाया गया.
मेरठ के पूर्व डीएसओ दोषी
मेरठ मंडल में जांच के दौरान तत्कालीन डीएसओ विकास गौतम को दोषी पाया गया है. उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की गई है और अदालत में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है. साथ ही, कई पूर्ति निरीक्षक, कोटेदार, सेल्समैन और कंप्यूटर ऑपरेटर भी जांच के दायरे में हैं.
एल-1 डिवाइस से रोका जाएगा फर्जीवाड़ा
प्रमुख सचिव खाद्य रणवीर प्रसाद के अनुसार, अब सभी ई-पॉश मशीनों में एल-1 बायोमैट्रिक डिवाइस जोड़ी जा रही है. यह डिवाइस केवल उसी अंगूठे को स्वीकार करेगी जिसमें रक्त प्रवाह हो, यानी नकली अंगूठा काम नहीं करेगा. 30 जून तक यह तकनीक सभी दुकानों पर लागू की जाएगी. CID प्रमुख दीपेश जुनेजा ने कहा कि गरीबों को उनका हक दिलाना सरकार की प्राथमिकता है. घोटाले की जांच विशेष अभियान के तहत कराई जा रही है. दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज कर दी गई है.
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