खरसावां के मरांगहातु गांव से जुड़ी हैं पूर्व राष्ट्रपति डॉ APJ अब्दुल कलाम की यादें, देखें Pics
देश के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम खरसावां के कुचाई स्थित मरांगहातु गांव आये थे. यहां इनकी कई यादें जुड़ी हैं. यहां के आदिवासियों से रूबरू हुए थे. वहीं, बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित भी किये थे. साथ ही सिल्क उत्पादित वस्त्रों की प्रशंसा भी किये थे.
By Prabhat Khabar Digital Desk | October 15, 2021 6:27 PM
APJ Abdul Kalam Birth Anniversary 2021 (शचिन्द्र कुमार दाश, सरायकेला) : सरायकेला-खरसावां जिला के कुचाई प्रखंड के मरांगहातु गांव से देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मेन भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की यादें जुड़ी हुई हैं. पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम वर्ष 2004 में सरायकेला-खरसावां जिला के कुचाई प्रखंड के मारंगहातु गांव में आये थे. डॉ कलाम पहले हेलीकॉप्टर से कुचाई के जोबजंजीर गांव पहुंचे थे. इसके बाद मरांगहातु गांव पहुंचे कर विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए थे.
झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक अर्जुन मुंडा के आग्रह पर कुचाई आये तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ कलाम करीब यहां करीब ढाई घंटे गुजारे थे. डॉ कलाम के इस दौरे के बाद से भी कुचाई और यहां का प्रसिद्ध सिल्क कपड़े को अलग पहचान मिली.
डॉ कलाम यहां झारखंडी कला-संस्कृति के लेकर यहां के रहन-सहन व जीवन शैली से अवगत हुए थे. लोगों ने यहां आदिवासी परंपरा से पैर पखार कर उनका स्वागत किया था. कुचाई के बिरगमडीह में आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोगों ने डॉ कलाम को पत्ते से तैयार टोपी भेंट की. पत्ते की यह टोपी काफी दिनों तक राष्ट्रपति भवन में भी रखी हुई थी.
छऊ व पाइका नृत्य से कलाकारों ने स्वागत किया था. स्थानीय लोगों द्वारा तैयार बाजा को द कलाम ने बजाया था. डॉ कलाम कुचाई प्रखंड के मरांगहातु गांव के स्कूली बच्चों से सीधे मुखातिब होने के साथ-साथ उनके सवालों के जवाब भी दिये थे. डॉ कलाम ने तब बच्चों को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का एहसास कराते हुए शपथ भी दिलायी थी.
साथ ही कुचाई में उत्पादित सिल्क के कपड़े व तसर कोसा की गुणवत्ता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी. इसके बाद से ही राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुचाई सिल्क को एक अलग पहचान मिली. डॉ कलाम ने मरांगहातु में कुम्हार समुदाय के लोगों द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाने के कार्य को भी प्रोत्साहित किया था.
मारंगहातु गांव के लुबुराम सोय बताते हैं कि उन्हें डॉ कलाम के साथ संवाद करने का मौका मिला था. उस पल को आज तक नहीं भूल पाये हैं. गांव में डॉ कलाम के दौरा के बाद मरांगहातु गांव को अलग पहचान मिली थी.