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वह संगठन की ओर से आयोजित वर्जुअल संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे. डॉ पांडे ने कहा कि कोविड के बढ़ते प्रकोप के बीच आम लोग तो दूर संक्रमित चिकित्सकों को भी बेड नहीं मिल रहा है. उन्होंने बताया कि कोरोना के फर्स्ट फेज में राज्य में 106 चिकित्सकों की मौत हुई है, लेकिन इनमें छह चिकित्सकों के परिजनों को क्षतिपूर्ति के तौर पर 10-10 लाख रुपये एवं दो परिवार के एक-एक सदस्य को नौकरी मिली है.
ऐसे में सरकार की ओर से चिकित्सक व अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को क्षतिपूर्ति मिले और सरकारी व निजी अस्पतालों में नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था हो, क्योंकि हम कोरोना से पिछले एक साल से लड़ रहे हैं. ऐसे में अगर हम ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो आम लोगों का इलाज कौन करेगा.
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संगठन के वरिष्ठ सदस्य डॉ कौशिक लाहिड़ी ने कहा कि चिंता का विषय है कि लोगों में जागरूकता की कमी है. प्रशासनिक तौर पर भी खास पहल नहीं हो रही है. केवल बुलेटिन जारी किया जा रहा है. चुनावी रैलियों में कोविड प्रोटोकाल का पालन नहीं हो रहा है. उन्होंने बताया कि मास्क का व्यवहार करके ही ऑस्ट्रेलिया और स्विटरजरलैंड में संक्रमण के मामले कम हुए हैं.
उन्होंने कहा कि अब कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाने की जरूरत नहीं. आम जन को सचेत होना होगा. मास्क का इस्तेमाल करना जरूरी है. अस्पताल में बुनियादी सुविधाएं बढ़ें. संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए सरकार नमूनों की जांच में गति लाये. किसी भी अस्पताल में ऑक्सीजन कम न हो, इसके उपाय हों. उन्होंने कहा कि कोरोना से बचने के लिए देश के सभी लोगों को टीके के लिए आगे आने की जरूरत है.
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Posted By: Aditi Singh