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आजादी के बाद बंगाल का विधानसभा
आजादी के बाद बंगाल में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ. तब सदन की 264 सीटों पर 257 पुरुष विधायक चुने गये थे और मात्र 7 महिला विधायक विधानसभा पहुंच पायीं थीं. वर्ष 1957 में 260 विधायक चुने गये. इस बार महिला विधायकों की संख्या पिछली बार की तुलना में करीब दो गुनी 13 हो गयी. वर्ष 1962 का जब चुनाव हुआ तो उसमें 264 विधायक सदन पहुंचे थे. महिला विधायकों की संख्या इस बार भी 1957 की तुलना में ज्यादा थी. 1962 में बंगाल विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 15 हो गयी. उसके बाद लगातार कई विधानसभा चुनावों में महिला विधायकों की संख्या घटती चली गयी.
साल दर साल घटते-बढ़ते रहे आंकड़ें…
वर्ष 1967 के चुनाव में मात्र 9 महिला विधानसभा का चुनाव जीत सकीं, जबकि वर्ष 1969 में 8, वर्ष 1971 में 7, वर्ष 1972 में 5 और वर्ष 1977 में मात्र 4 विधायक सदन पहुंच पायीं. हालांकि, इसके बाद यानी वर्ष 1982 से वर्ष वर्ष 2006 तक लगातार महिला विधायकों की संख्या सदन में बढ़ती गयी. वर्ष 1982 के चुनाव में राज्य विधानसभा में 7 महिलाएं चुनकर पहुंचीं थीं. वर्ष 1987 में जब विधानसभा के गठन के लिए 10वीं बार चुनाव हुए, तो महिला विधायकों की संख्या बढ़कर 13 हो गयी. वर्ष 1991 में यह संख्या 23 और वर्ष 1996 में 24, जबकि वर्ष 2001 में महिला विधायकों की संख्या 29 हो गयी.
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महिलाओं को टिकट देने में ममता आगे
2006 में जब आखिरी बार वाम मोर्चा की सरकार बनी तो सबसे ज्यादा 43 महिला विधानसभा पहुंचीं थीं. इसके बाद 2011 में आंकड़े में गिरावट आयी. महिला विधायकों की संख्या घटकर 39 रह गयी. 2016 में जब 16वीं बार विधानसभा के चुनाव हुए, तो 44 महिलाएं चुनकर सदन पहुंचीं. सबसे ज्यादा 44 महिला विधायक 16वें सदन में थीं. इस बार ममता बनर्जी की पार्टी ने 291 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है. इनमें से 50 महिला उम्मीदवार हैं. देखना यह है दूसरे दल महिलाओं को कितना प्रतिनिधत्व करने का मौका देते हैं और जनता कितनी महिलाओं को अपना प्रतिनिधि चुनती है.