BHU की स्टडी में बड़ा खुलासा, 32 की जगह अब 28 दांत ही बीस फीसद तक युवाओं में, जबड़े के आकार में आ रही कमी
Varanasi News: बीएचयू के फैकल्टी ऑफ डेंटल साइंस एक्सपर्ट प्रो. टीपी चतुर्वेदी पिछले 20 साल से ओपीडी में आने वाले मरीजों खासकर युवाओं पर अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 21वीं सदी के 20 फीसदी से ज्यादा युवाओं में बत्तीसी यानी 32 दांत की जगह 28 दांत ही निकल रहे हैं.
By Prabhat Khabar News Desk | April 27, 2022 11:26 AM
Varanasi News: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के फैकल्टी ऑफ डेंटल साइंस में हुए एक नए अध्ययन के मुताबिक अब लोगो मे 32 की जगह 27 दाँत आ रहे हैं. यह बदलाव डेंटल साइंस के लिए चिंता का विषय है. साइंटिस्ट का कहना है कि यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले 500 साल के बाद दाँत मानव के अवशेषी अंगों में शामिल हो जाएगा. लोग अब जिस प्रकार से फ़ास्ट फुड के आदि होकर कड़ी चीजे खाने से परहेज कर रहे हैं उससे कम चबाने की वजह से जबड़ो का विकास नही हो रहा है. जिसकी वजह से 35 फीसदी युवाओं में यदि 32 दांत आ भी जाते हैं तो टेढ़े-मेढ़े होने से इन्हें ठीक करवाना पड़ता है.
बीएचयू के फैकल्टी ऑफ डेंटल साइंस एक्सपर्ट प्रो. टीपी चतुर्वेदी पिछले 20 साल से ओपीडी में आने वाले मरीजों खासकर युवाओं पर अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 21वीं सदी के 20 फीसदी से ज्यादा युवाओं में बत्तीसी यानी 32 दांत की जगह 28 दांत ही निकल रहे हैं. जबड़े के सबसे पिछले हिस्से में अक्ल दाढ़ (विजडम टीथ) विकसित ही नहीं हो रही है. 35 फीसदी युवाओं में 32 दांत आ भी जाते हैं तो टेढ़े-मेढ़े होने से इन्हें ठीक करवाना पड़ता है. 18 से 25 साल की उम्र के बीच लोगों के 29 से लेकर 32 दांत निकलते हैं. इन्हें आम बोलचाल की भाषा में अक्ल दाढ़ कहते हैं.
अध्ययन में पता चला है कि 20 फीसदी युवाओं में अक्ल दाढ़ न निकलने से चबाने वाले दांतों की संख्या घटकर आठ रह गई है. मसूड़े का आकार भी कम हो गया है. सामने की ओर काटने वाले 20 दांतों में कोई बदलाव देखने में नहीं आया है. पहले लोगों के जबड़े बड़े होते थे. लोग भुना चुना, भुट्टा और तमाम कड़ी चीजें चबाकर खाया करते थे. गांव में अब भी लोग ऐसा कर रहे हैं, लेकिन शहरों के युवा इससे दूर हो गए हैं. फास्ट फूड के जमाने में शहरी युवा अब कड़ी चीजें खाने से परहेज कर रहे हैं. कम चबाने से जबड़ों का साइज छोटा होने लगा है. ऐसे में अक्ल दाढ़ विकसित होने के लिए स्थान ही नहीं बच रहा. बड़ी तेजी से लोगों में इसकी कमी देखी जा रही है, ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले 5000 साल में यह मानव का अवशेषी अंग हो जाएगा.