Jharkhand Foundation Day:अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ भगवान बिरसा मुंडा के उलगुलान का गवाह है डोंबारी बुरू
झारखंड के खूंटी जिले के डोंबारी बुरू में सैकड़ों निर्दोष लोगों पर जुल्म ढाया था. 9 जनवरी 1900 को अंग्रेजों ने रांची से लगभग 50 किलोमीटर दूर खूंटी जिले के अड़की ब्लॉक स्थित डोंबारी बुरू (मुंडारी भाषा में बुरू का अर्थ पहाड़ होता है) में निर्दोष लोगों को चारों तरफ से घेर कर गोलियों से भून दिया था.
By Guru Swarup Mishra | November 13, 2022 5:45 PM
Jharkhand Foundation Day: जालियांवाला बाग हत्याकांड तो सभी को याद ही होगा, जहां अंग्रेजों ने अपनी कायरता का परिचय देते हुए हजारों देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया था. 13 अप्रैल 1919 को रॉलेट एक्ट के विरोध में हो रही एक सभा पर जनरल डायर नामक एक अंग्रेज ऑफिसर ने अकारण ही सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दी थीं. इसमें हजार से अधिक लोग शहीद हो गये थे और हजारों की संख्या में घायल भी हो गए थे. इसी तरह झारखंड के खूंटी के डोंबारी बुरू में 9 जनवरी 1900 को अंग्रेजों ने सभा कर रहे बिरसा मुंडा व उनके अनुयायियों पर अंधाधुंध गोलियां चलवायी थीं. इसमें सैकड़ों आदिवासी शहीद हो गए थे.
9 जनवरी 1900 को चारों तरफ से घेरकर की थी फायरिंग
यह तारीख भला कौन देशभक्त भूल सकता है, लेकिन बहुत कम लोगों को याद होगा कि जालियांवाला बाग हत्याकांड से पहले भी अंग्रेजों ने झारखंड के खूंटी जिले के डोंबारी बुरू में सैकड़ों निर्दोष लोगों पर जुल्म ढाया था. 9 जनवरी 1900 को अंग्रेजों ने रांची से लगभग 50 किलोमीटर दूर खूंटी जिले के अड़की ब्लॉक स्थित डोंबारी बुरू (मुंडारी भाषा में बुरू का अर्थ पहाड़ होता है) में निर्दोष लोगों को चारों तरफ से घेर कर गोलियों से भून दिया था.
खूंटी जिले के उलिहातु (भगवान बिरसा मुंडा का जन्म स्थल) के पास स्थित डोंबारी बुरू में भगवान बिरसा मुंडा अपने 12 अनुयायियों के साथ सभा कर रहे थे. इस सभा में आसपास के दर्जनों गांवों के लोग शामिल थे. बिरसा जल, जंगल जमीन बचाने के लिए उलगुलान का बिगुल फूंक रहे थे. सभा में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी मौजूद थे. जैसे ही अंग्रेजों को बिरसा मुंडा की इस सभा की खबर हुई, तो बिना देर किए अंग्रेज सैनिक वहां धमक गये और डोंबारी पहाड़ को चारों तरफ से घेर लिया. जब अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को हथियार डालने के लिए ललकारा, तो बिरसा और उनके समर्थकों ने हथियार डालने की बजाय शहीद होना उचित समझा. फिर क्या था अंग्रेज सैनिक आदिवासियों पर कहर बनकर टूट पड़े. बिरसा ने भी अंग्रेजों का डटकर सामना किया, लेकिन इस संघर्ष में सैकड़ों लोग शहीद हो गये. हालांकि, बिरसा मुंडा अंग्रेजों को चकमा देकर वहां से निकलने में सफल रहे.
खूंटी का डोंबारी बुरू अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है. ये आज भी वीर शहीदों की कहानी बयां करता है. पूर्व राज्यसभा सांसद और अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री, आदिवासी बुद्धिजीवी व साहित्यकार डॉ रामदयाल मुंडा ने यहां एक विशाल स्तंभ का निर्माण कराया था. यह विशाल स्तंभ आज भी सैकड़ों आदिवासियों की शहादत की कहानी बयां करता है.