जानें सोहराय पर्व की महता
मालूम हो कि सोहराय पर्व के अवसर पर अपने पालतू पशुओं को नदी, नाला या तालाबों में नहलाया जाता है. पशुओं को नहाने के बाद ग्रामीण गांव के एक छोर में नायके (पुजारी) द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. इसके बाद खिचड़ी के रूप में भोग को ग्रहण करते हैं.
इसके बाद नायके (पुजारी) द्वारा पूजा किये स्थान पर मुर्गी का अंडा रखा जाता है. इसके बाद गांव के सभी पालतू पशुओं के साथ अंडा रखे स्थान में भ्रमण करते हैं. पूजा स्थल पर रखे अंडा में जिस पालतू पशु का पैर लग जाता है या पैर से दबकर फुट जाता है,उस पशु को भाग्यशाली मानते हुए उसकी पूजा अर्चना की जाती है.
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शाम होते ही सभी पुरष अपने पालतू पशुओं को तेल लगाते हैं. वहीं, महिलाएं सुप में अरवा चावल, धूप, घास एवं दीये-बत्ती से पालतू पशुओं की आरती उतारती है. दूसरे दिन भी सभी अपने पालतू पशुओं को नहलाते हैं. इसी दिन गोहाल पूजा किया जाता है. गोहाल पूजा में अलग-अलग घरों में अलग- अलग पूजा की जाती है.
शाम के समय सभी अपने- अपने घर के मुख्य द्वार (जिसमें पालतू पशु प्रवेश करते हैं) पर आलपाना लिखकर (अरवा चावल की गुंडी से लिखने वाला) उसपर घास रखा जाता है, ताकि घास को खाते हुए पालतू पशुओं को घर में स्वागत किया जाता है. वहीं, पशुओं की पूजा अर्चना भी जाती है.
Posted By : Samir Ranjan.