पढ़े-लिखे युवकों को दलपति बनाया जाता था
पूर्व मुखिया लक्ष्मण सिंह ने कहा कि उनके जमाने में संचार व प्रचार-प्रसार का हाईटेक साधन नहीं था. अपने समर्थकों के साथ साइकिल से मुखिया चुनाव का प्रचार-प्रसार करते थे. चुनाव प्रचार में उस समय 50 रुपये या अधिक से अधिक 100 रुपये खर्च होते थे. उनके कार्यकाल में नाथपुर मीडिल स्कूल की नींव रखी गयी थी. उस समय शिक्षकों को अपनी जेब से पॉकेट मनी देते थे. इसके अलावा चौकीदारों की गांव में बहाली उनकी स्वीकृति से होती थी. गांव में पढ़े-लिखे युवकों को दलपति बनाया जाता था और बाद में मुखिया या मेरी स्वीकृति से पंचायत सचिव पद पर बहाली होती थी.
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पंचायत के सर्वे-सर्वा होते थे मुखिया
पूर्व मुखिया लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि वृद्ध व्यक्तियों की पेंशन उनकी स्वीकृति से पास होती थी और पंचायत की वृद्ध महिलाओं व पुरुषों को वृद्धा पेंशन मिलनी शुरू हो जाती थी. इसके अलावा प्रशासनिक अधिकारी बगैर मुखिया की अनुमति के पंचायत में प्रवेश नहीं करते थे. पंचायत में कोई भी मामला होता था तो सरपंच उसे निबटाते थे. मुखिया से राय-सलाह ली जाती थी. पंचायत के मुखिया का उनके समय अलग ही दबदबा था. पंचायत के सर्वे-सर्वा होते थे मुखिया, लेकिन अब समय बदल गया है. मुखिया को भी कानून के दायरे में रहना पड़ता है. अब तो हर काम बिना पैसे के नहीं होता है. उनके समय की बात ही कुछ अलग थी. हर काम में ईमानदारी थी.
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रिपोर्ट: महीपाल सिंह, पालकोट, गुमला