यूएस मायो क्लीनिकल कॉलेज के साथ चल रही है स्टडी
मेडिकल कॉलेज में 50 मरीजों का डाटा सॉफ्टवेयर में अपलोड किया है. जिसके आधार पर तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा है. ट्रायल बेस में अभी फेफड़ों से जुड़ी दो बीमारी ली गई है. जिसमें सीना सही ढंग से न फूलना (IPF) और लंग में हवा का सही से एक्सचेंज न हो पाना (NSIP) शामिल है. टीवी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के प्रोफेसर मोहम्मद शमीम और उनकी चिकित्सकों की टीम का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर से उपचार करने से अमेरिका में बेहतर रिजल्ट आ रहे हैं.
सॉफ्टवेयर खरीद कर मरीजों का किया जाएगा उपचार
रेडियो डायग्नोसिस डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर सैफुल्लाह खालिद कहते हैं कि जेएन मेडिकल कॉलेज में एआई सॉफ्टवेयर से ट्रायल स्टडी की जा रही है. जिसमें बेहतर रिजल्ट आये, तो सॉफ्टवेयर खरीद कर मरीजों का उपचार किया जाएगा. अभी तक किसी मरीज के लंग्स में डायग्नोस के लिए सिटी स्कैन समेत अन्य जांच की सहायता ली जाती है. उसके बाद चिकित्सकों का पैनल रिपोर्ट देखता है. जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों की टीम ने स्टडी व सॉफ्टवेयर की परख के लिए अभी 50 मरीजों का डाटा अपलोड किया है. देखा जाए तो स्टडी लगभग पूरी होने को है. स्टडी की रिपोर्ट सही आई तो सॉफ्टवेयर खरीद कर इलाज किया जाएगा.
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यूं काम करता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलिजेंट तरीके से सोचने वाला सॉफ्टवेयर बनाने का एक तरीका है. जो मानव मस्तिक जैसा सोचता है और समस्या को हल करते समय सिखाता है. कैसे निर्णय लेते हैं और कैसे काम करते हैं. यह एआई के जरिए जान सकते है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तीन प्रकार का होता है पहला WEAK AI, दूसरा STRONG AI और तीसरा SUPER AI है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक जान मैंकार्थी है.
इनपुट- आलोक अलीगढ़