प्रवीण कुमार, लेखक-अध्यापक: ‘कड़क सिंह’ फिल्म न केवल पंकज त्रिपाठी के अभिनय की नयी छलांग है, बल्कि इसने कथा और कथा कहने के तरीके से भी बड़ी छलांग लगायी है. यह निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी और उनकी टीम की सफलता है. आर्थिक अपराध शाखा के अधिकारी एके श्रीवास्तव (पंकज त्रिपाठी) को आत्महत्या के प्रयास के चलते निलंबित होना पड़ता है. उसकी आत्महत्या की कोशिश इसलिए असफल हो जाती है कि फांसी लगाने के लिए जिस पंखे से वह लटकता है, वह टूट जाता है. श्रीवास्तव अपनी स्मृति खो बैठता है. उसे जो भी याद है, वह इतना पुराना है कि आज के हालात से उसका कोई मेल नहीं. बड़े अधिकारी आत्महत्या के प्रयास और निलंबन की आड़ में एक चिट फंड घोटाले की उस फाइल को बंद कर देना चाहते हैं, जिसकी सघन जांच अब तक श्रीवास्तव कर रहा था. दर्शक के दिमाग का एंटिना यहीं से खड़ा होता है. आर्थिक अपराध शाखा के अधिकारी इस अंदेशे से खुश हैं कि अब उसकी स्मृति वापस नहीं आयेगी. कहानी यहीं से दर्शकों को बांधना शुरू करती है. अगर दर्शक से एक छोटा दृश्य भी छूटा, तो समझिए कि कथा-युक्ति इतनी बारीक है कि फिल्म हाथ से छूट सकती है.
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