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सिंदूर खेला क्या है ?
दुर्गा पूजा का आरंभ नवरात्रि की षष्ठी तिथि से होता है. बंगाली मान्यताओं के अनुसार देवी दुर्गा अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ धरती पर अपने मायके आती हैं. इनके साथ मां सरस्वती और मां लक्ष्मी भी पधारती है. पंडालों में भव्यता से पांच दिन तक देवी की उपासना करते हैं फिर दशमी को सिंदूर खेला यानी कि मां को सिंदूर अर्पित कर विदा किया जाता है.पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला काफी लंबे समय से चली आ रही है.महिलाएं सज-धज कर मां दुर्गा को विदाई देती है.
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सिंदूर खेला का महत्व
मां दुर्गा को पान के पत्ते से सुहागिनें सिंदूर लगाती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. इसके बाद महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर धूम-धाम से ये परंपरा निभाती है. रस्म के अनुसार मां की मांग में सिंदूर लगाकर और उन्हें मिठाई खिलाकर मायके से विदा किया जाता है. सुखद दांपत्य जीवन की कामना के साथ ये अनुष्ठान किया जाता है. सिंदूर खेला की रस्म 450 साल से चली आ रही है. ये परंपरा पश्चिम बंगाल से शुरू हुई थी. नवरात्रि के आखिरी दिन बंगाली समुदाय के लोग धुनुची नृत्य कर मां को प्रसन्न करते हैं.
पूजा पंडालों में उमड़ने लगी महिलाओं की भीड़
पूजा पंडाल में सिंदूर खेला के दौरान महिलाए लाल रंग की साड़ी पहनकर मां दुर्गा को अंतिम विदाई दी जाती है. दोपहर से ही पूजा पंडाल में महिलाओं की भीड़ लगनी शुरु हो गई है.नाच गाने के साथ महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर तब मां दुर्गा को विदाई देती है.
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पंडालों में सुबह से ही उमड़ने लगी है दर्शनार्थियों को भीड़