वाराणसी में इस जगह पर स्थित है मां शैल्य देवी की मंदिर, नवरात्रि के पहले दिन जुटी भक्तों की भारी भीड़
Navratri 2021 Latest News: शक्ति के आराधना का महापर्व इस शारदीय नवरात्र शुरू हो गया है. देवी के नौ रूपों की पूजा इन नौ दिनो में की जाती है.
By Prabhat Khabar Digital Desk | October 7, 2021 8:20 AM
सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार इस बार 8 दिन की तिथि के साथ पड़ने वाली नवरात्रि में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री के रूप में भक्त दर्शन – पूजन कर माँ की आराधना करेंगे. पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में माँ शैलपुत्री वाराणासी के अलईपुरा में स्थित है. शारदीय नवरात्र में माता शैलपुत्री अलईपुरा में अपने भक्तों को दर्शन देकर उन्हें शक्ति- समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. शास्त्रों में माता शैलपुत्री के दर्शन-पूजन के महात्म्य है.
शक्ति के आराधना का महापर्व इस शारदीय नवरात्र शुरू हो गया है. देवी के नौ रूपों की पूजा इन नौ दिनो में की जाती है. पूरे देश की तरह ही वाराणसी के नौदुर्गा मंदिरों में भी भक्तों का भी भीड़ जुटनी शुरू हो गई है. माता के प्रथम स्वरूप के रूप में अलईपुरा में स्थित है माँ शैलपुत्री का मंत्री. शारदीय नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर शक्ति और समृधि प्राप्त होती है. इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है. दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है.
माँ शैलपुत्री के महात्म्य को लेकर बताया कि किसी भी प्रकार की साधना के लिए शक्ति का होना जरूरी है और शक्ति की साधना का पथ अत्यंत गूढ और रहस्यपूर्ण है. हम नवरात्र में व्रत इसलिए करते हैं, ताकि अपने भीतर की शक्ति, संयम और नियम से सुरक्षित हो सकें, उसका अनावश्यक अपव्यय न हो. संपूर्ण सृष्टि में जो ऊर्जा का प्रवाह है, उसे अपने भीतर रखने के लिए स्वयं की पात्रता तथा इस पात्र की स्वच्छता भी जरूरी है.
भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्री के रूप में है। हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया है. भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प ह.इन्हें पार्वती स्वरुप माना जाता है ऐसी मान्यता है की देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी मान्यता है की इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट मिट जाते हैं.
पुरानों की मान्यता के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति ने जब अपने यहाँ यज्ञ किया तो अपने दामाद भगवान शिव को छोड़कर सभी देवतागण को आमंत्रित किया. इसे अपने पति भगवान शिव का घोर अपमान समझकर माता सती ने यज्ञ हवन में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी. इसके बाद हिमालय राज शैल के यहां माता शैलपुत्री के रूप में जन्म लेती हैं और भगवान शिव के साथ उनका मिलन होता है. यही माता शैलपुत्री के रूप में पुराणों में वर्णित है। इनका मन्दिर अलईपुरा में स्थित हैं. जहां भक्तगण नवरात्र में अपनी श्रद्धा- भक्ति के साथ आते हैं और माता को लाल चुनरी, गुड़हल का फूल और नारियल चढ़ाकर अपनी मनोकामना पूरा होने की मन्नत मांगते हैं.