मत्स्य पालन में संभावना

भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक देश है. इस क्षेत्र में सालाना एक लाख करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य रखा है.

By संपादकीय | July 12, 2023 8:03 AM
an image

केंद्र सरकार ने कहा है कि मत्स्य पालन को देश की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख क्षेत्र बनाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं. केंद्रीय मत्स्य पालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीक से मछली पालन किये जाने के प्रयासों की सराहना की है. हर वर्ष 10 जुलाई को राष्ट्रीय मत्स्य पालन दिवस मनाया जाता है. यह दिवस अर्थव्यवस्था में मछली पालन करने वाले किसानों के योगदान का सम्मान करने का एक अवसर माना जाता है. इस दिन देश के अलग-अलग हिस्सों के मत्स्य पालक किसान, उद्यमी, पेशेवर लोग, अधिकारी और वैज्ञानिक इस क्षेत्र से जुड़े मुद्दों के बारे में परिचर्चा करते हैं. इस वर्ष तमिलनाडु में चेन्नई के पास महाबलीपुरम में मत्स्य पालन के बारे में चर्चा हुई. बैठक में जानकारी दी गयी कि सरकार ने इस क्षेत्र में सालाना एक लाख करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य रखा है.

वर्तमान में यह निर्यात 64 हजार करोड़ रुपये है. बैठक में यह भी कहा गया कि भारत में समुद्री संसाधन सबसे बड़ा है. ऐसे में समझा जा सकता है कि मछली पालन के क्षेत्र में विकास की बहुत संभावनाएं हैं. भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक देश है. मत्स्य पालन देश में रोजगार का एक बड़ा स्रोत होने के साथ-साथ लोगों के लिए पोषक भोजन का भी एक टिकाउ स्रोत है. खास तौर पर देश के तटीय हिस्सों में रहने वाली आबादी के लिए यह प्रमुख भोजन रहा है. यह क्षेत्र लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को सीधे या आंशिक रुप से रोजगार उपलब्ध कराता है.

देश में दो तरह का मछली पालन होता है- समुद्री मछलियां और नदी, नहर, झील, तालाब जैसे जलाशयों की ताजा पानी की मछलियां. हाल के समय में, समुद्री मछलियों की जगह ताजा पानी की मछलियों का उत्पादन तेजी से बढ़ा है. वर्ष 2021-22 में 16.25 मिलियन मीट्रिक टन का रिकॉर्ड मछली उत्पादन हुआ था, लेकिन भारत समुद्री मछलियों के क्षेत्र में अपनी क्षमता का केवल 10-12 प्रतिशत हिस्से का ही उपयोग कर पा रहा है. भारत की उष्णकटिबंधीय जलवायु एक बड़ी वजह है, जिसमें मछलियां ज्यादा समय तक सुरक्षित नहीं रह पातीं. रेफ्रिजरेशन के खर्च से मछलियां महंगी हो जाती हैं.

तटीय इलाकों में तूफानों और मानसून के महीनों में मछली पकड़ना मुश्किल हो जाता है. ऐसे ही, लगभग 60 फीसदी मछुआरे साधारण नौकाओं से मछली पकड़ते हैं, जिससे वह गहरे समुद्र में नहीं जा पाते. मछलियों के संगठित बाजार की भी कमी है. ऐसी चुनौतियों का हल निकाला जाना चाहिए, ताकि भारत के विकास में वरदान सरीखे समुद्र से मिले जलीय संसाधनों के योगदान को बढ़ाया जा सके.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version