चित मनोवृत्ति के लिए क्रियायोग का अभ्यास करें, कोलकाता के योगदा सत्संग आश्रम में बोले स्वामी चिदानंद जी

पवित्र योगदा आश्रम कोलकाता के उपनगर दक्षिणेश्वर में गंगा नदी के किनारे स्थित है, जहां इस विशेष प्रवचन के पहले वाईएसएस के सन्यासियों ने भजन-कीर्तन से सबका मन मोह लिया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 19, 2023 7:12 PM
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वैश्विक महामारी कोरोनावायरस का दुष्प्रभाव झेलने के बाद उतार-चढ़ाव वाले इस अराजक और सनकी माहौल वाले संसार में, जहां लोग निरंतर परिवर्तन और असुरक्षा में जी रहे हैं, आंतरिक शांति चाहने वालों के लिए परमहंस योगानंद का क्रियायोग ही अंतिम शरणस्थल (उपाय) है. योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया और सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप (वाईएसएस/एसआरएफ) के अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख श्री श्री स्वामी चिदानंद जी ने कोलकाता के दक्षिणेश्वर के वाईएसएस के आश्रम/मठ में ये बातें कहीं.

उन्होंने कहा कि जगन्माता की उपस्थिति से पवित्र दक्षिणेश्वर में एक बार फिर आकर मुझे खुशी हो रही है. अमेरिका, कनाडा, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, साउथ अमेरिका, जापान और विश्व के अन्य भागों से आकर यहां उपस्थित लोगों को देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है. पवित्र योगदा आश्रम कोलकाता के उपनगर दक्षिणेश्वर में गंगा नदी के किनारे स्थित है, जहां इस विशेष प्रवचन के पहले वाईएसएस के सन्यासियों ने भजन-कीर्तन से सबका मन मोह लिया.

उसके बाद स्वामी चिदानंद जी का प्रवचन हुआ. इसमें 800 श्रद्धालु मौजूद थे. स्वामी चिदानंद एसआरएफ के अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित माउंट वाशिंगटन मुख्यालय से एक महीने की भारत यात्रा पर आये हैं. इसके तहत वे वाईएसएस के विभिन्न आश्रमों का अवलोकन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि क्रियायोग का गहरा अभ्यास करने वाले का उचित मनोभाव उसके बाहरी आचार-व्यवहार से ही लक्षित हो जाता है.

उन्होंने वाईएसएस/एसआरएफ की तृतीय अध्यक्ष दया माता के विचारों का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘ईश्वर की शरण में रहने पर मनुष्य अपनी आदतों, मनोभावों और मोह से मुक्त होकर ज्ञान, ईश्वरीय प्रेम और निस्वार्थ भाव से संचालित होता है. दया माता में यह दिव्य मनोभाव हम देखते थे. हम अच्छी तरह जानते हैं कि ईश्वर ही एकमात्र सत्य हैं और इस संसार की प्रत्येक वस्तु अवास्तविक है, भ्रामक है.’

उन्होंने कहा, ‘हम संगम और सत्संग के माध्यम से प्राप्त आशीर्वादों के द्वारा विश्व भर के अनंत मित्रों के साथ दिव्य मित्रता का संबंध बनाते हैं और उसके आभामंडल से विश्व के अनेक भाइयों और बहनों का जीवन उन्नत होता है. जो भक्त चैतन्य हैं, ग्रहणशील हैं, उनकी ओर गुरुदेव की कृपा और चुंबकीय दिव्यता लगातार प्रवाहित हो रही है, जिससे भक्तों के मस्तिष्क की कोशिकाएं दिव्य हो रही हैं और उनकी चेतना में बदलाव हो रहा है. भक्त को बस अपनी चेतना को कूटस्थ (दो भौहों के बीच) रखना है.’

उन्होंने कहा कि सौ साल से भी पहले महान योगी श्री श्री परमहंस योगानंद ने आध्यात्मिक संस्थाओं योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) और सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप (एसआरएफ) की नींव रखी थी. योगानंद जी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी’ ( हिंदी अनुवाद- योगी कथामृत) है, जो कि सौ सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक है. कोलकाता में इस कार्यक्रम में उपस्थित भक्त ने कहा, ‘स्वामी चिदानंद जी के सत्संग में आने की चिर प्रतीक्षित कामना आज पूरी हुई. उनकी बातों से हमारी साधना में उत्साह का संचार हो गया.

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