विदेश मंत्री एस जयशंकर मोदी सरकार की विदेश नीति को बेबाकी और साफगोई से बयान करने के लिए मशहूर हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्व दृष्टि को नीतिगत रूप देने में केंद्रीय भूमिका निभायी है. बदलती विश्व व्यवस्था में एक ओर जहां खेमेबाजी बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों के नेतृत्व के रूप में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती जा रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए विश्व को बहुध्रुवीय बनाने तथा व्यापक सहकार बढ़ाने पर हमेशा जोर दिया है. इस संदर्भ में जयशंकर का यह कहना अहम हो जाता है कि वैश्विक संबंधों के लिए नियम और उनका समुचित अनुपालन आवश्यक है. भले ही कोई कदम ऐसा लगे कि यह नैतिकता के मानदंडों के अनुरूप नहीं है, पर उसे व्यापक परिदृश्य में देखा जाना चाहिए. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल की खरीद की और ऐसा करते हुए पश्चिमी देशों की आलोचना एवं उनके दबाव की परवाह नहीं की गयी. इसकी वजह यह थी कि हमें कच्चा तेल सस्ती दरों पर मिल रहा था. उस समय जयशंकर ने कहा था कि भारत साल भर में जितना तेल रूस से खरीद रहा है, उतना तो यूरोप एक दोपहर में खरीद लेता है. वे यह भी कह चुके हैं कि यूक्रेन संकट के लिए नाटो खेमे की नीतियां जिम्मेदार हैं. दशकों से रूस से सामरिक और आर्थिक संबंधों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के सामने कहा था कि यह दौर युद्ध का नहीं है और तनावों का समाधान कूटनीति से होना चाहिए. जल्दी ही पश्चिमी देशों को यह समझ में आ गया कि भारत अपने हितों को ध्यान में रखकर तेल की खरीद कर रहा है.
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