कुष्ठरोग का इलाज कराने वाराणसी जा रहे थे नेपाल नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव
पौराणिक कथा के अनुसार, नेपाल के नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव को कुष्ठरोग हो गया था. वह अपने कुष्ठरोग का इलाज कराने वाराणसी जा रहे थे और अपनी वाराणसी यात्रा के दौरान घने जंगल में विश्राम करने के लिए एक पीपल के वृक्ष के नीचे रूके. वहां पर उन्होंने विश्राम किया. विश्राम करने से पहले हाथ मुंह धोने के लिए पानी की तलाश रहे थे. काफी तलाशने के बाद उन्हें एक गड्ढे में पानी मिला. राजा विवश होकर उसी में हाथ मुंह धोने लगे. जैसे ही गड्ढे का पानी कुष्ठरोग से ग्रस्त हाथ पर पड़ा. हाथ का घाव व कुष्ठरोग गायब हो गया. उसके बाद राजा ने उसी पानी से स्नान कर लिया और उनका कुष्ठरोग समाप्त हो गया.
स्वप्न में आकर शिव जी ने राजा से कही ये बात
विश्राम करते हुए राजा वहीं सो गए. तब उनके स्वप्न में भगवान शिव आये और वहां (पीपल के वृक्ष के नीचे) होने के संकेत दिए. फिर राजा ने शिवलिंग को ढूंढने के उद्देश्य से उस स्थान पर मिट्टी खुदवाया और उन्हें उसी स्थान पर शिवलिंग मिला. उसी समय पीपल के वृक्ष के निचे से शिवलिंग को निकालकर राजा ने शिवलिंग को अपने राज्य में ले जाने की योजना बनाई तब उसी रात भगवान शिव जी ने राजा को पुन: स्वप्न में आकर कहा कि तुम शिवलिंग की स्थापना इसी स्थान पर करो और मंदिर का निर्माण करवाओ.
मंदिर के बगल में है कमलदाह पोखर
तभी से मंदिर के मुख्य दरवाजे के सामने घंटी बांधते हैं. मंदिर परिसर के बगल में बहुत बड़ी पोखर है. मान्यता है कि इस पोखर की खुदाई राजा ने हल बैल से की थी. आज उस पोखरे को कमलदाह पोखरा के नाम से जाना जाता है. इस पोखरे में कमल पुष्प बहुत खिलते हैं. इस तालाब में स्नान करने के बाद तालाब का जल लेकर महेंद्रनाथ का अभिषेक करते हैं. यह पोखरा लगभग ढाई सौ बीघा में स्थित है. इस पोखरा की परिक्रमा से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. महेंद्रनाथ की पूजा करने पर पुत्र की प्राप्ति होती है और चर्मरोग से छुटकारा मिलता है. सावन मास के दिनों में बाबा महेंद्रनाथ के दर्शन करने के लिए काफी दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.
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संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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