Prayagraj Election Results 2022: प्रयागराज की 12 सीटों के लिए मतगणना का काम जारी है. इलाहाबाद शहर पश्चिम से सिद्धार्थनाथ सिंह चुनावी मैदान में हैं. फिलहाल वह सपा प्रत्याशी ऋचा सिंह से आगे चल रहे हैं, लेकिन उन्हें ऋचा सिंह कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं.
पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के नाती हैं सिद्धार्थनाथ सिंह
बाहुबली अतीक अहमद के साम्राज्य को सीधे चुनती देने वाले सिद्धार्थ नाथ सिंह बेशक 2017 के चुनाव के बाद चर्चा में आए, लेकिन राजनीति से उनका नाता पुराना रहा है. उनकी राजनीतिक जड़े कितनी मजबूत है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह देश के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के नाती है. प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार से आने वाले सिद्धार्थ नाथ के चाचा नौनिहाल सिंह एनडी तिवारी और वीपी सिंह के कार्यकाल में प्रभावशाली मंत्री रह चुके है.
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एबीवीपी से शुरू किया राजनीति का सफर
सिद्धार्थ नाथ सिंह ने अपना सियासी सफर बीजेपी के ही संगठन एबीवीपी से शुरू किया. 1998 में दिल्ली प्रदेश के बीजेपी युवा मोर्चा में राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य बने. साल 2000 में उन्हें बीजेपी युवा मोर्चा में राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य और मीडिया सचिव बनाया गया. 2002 में वह बीजेपी की केंद्रीय मीडिया सेल का सहसंयोजक बने. इसके बाद उन्होंने गुजरात, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान मीडिया समन्वयक का काम किया.
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2009 में सिद्धार्थनाथ सिंह को बीजेपी ने बनाया राष्ट्रीय प्रवक्ता
इसके बाद 2009 में बीजेपी ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देते हुए राष्ट्रीय प्रवक्ता और लोकसभा चुनाव का समन्वयक नियुक्त किया. 2010 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के सह प्रभारी के तौर पर काम किया. 2012 में सिद्धार्थनाथ सिंह को बीजेपी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में केंद्रीय समन्वय बनाए. इसके बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश में भी बतौर प्रभारी कार्य किया.
2017 के चुनाव में सिद्धार्थ नाथ ने खिलाया कमल
विधानसभा 2017 के चुनाव में लाल बहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थ नाथ सिंह ने पहली बार शहर पश्चिमी विधानसभा में कमल खिला कर यह सीट बीजेपी की झोली में डाल दी. उस समय प्रदेश सरकार ने सिद्धार्थ नाथ सिंह को सुबे का स्वास्थ्य मंत्री बनाया था. हालांकि बाद में उनका मंत्रालय बदल दिया गया.
सिद्धार्थ नाथ ने 2017 के चुनाव में इस सीट पर करीब 85 हजार मत प्राप्त किए थे. वहीं, सपा से ऋचा सिंह करीब 60 हजार मतों के साथ दूसरे नंबर पर रही थी. राजनीतिक पंडितों की माने तो उस समय अतीक और असरफ ऋचा की मदद कर रहे थे. बावजूद इसके वह करीब 25 हजार के अंतर से चुनाव हार गई.
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