विश्व संग्रहालय दिवस : सौ साल बाद भी नालंदा संग्रहालय की पहचान जस-का-तस

वर्ल्ड क्लास की हैसियत रखने वाले नालंदा संग्रहालय की पहचान 21वीं सदी में भी जस-की-तस है. सौ साल बाद भी इसका विकास और विस्तार नहीं हो सका है. देश में जितने भी आर्कियोलॉजी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित संग्रहालय हैं, उनमें यह भी एक है. वर्ष 1917 में स्थापित यह संग्रहालय दुर्लभ पूरा अवशेषों को संजोये है

By Prabhat Khabar News Desk | May 18, 2020 12:43 AM
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नालंदा : वर्ल्ड क्लास की हैसियत रखने वाले नालंदा संग्रहालय की पहचान 21वीं सदी में भी जस-की-तस है. सौ साल बाद भी इसका विकास और विस्तार नहीं हो सका है. देश में जितने भी आर्कियोलॉजी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित संग्रहालय हैं, उनमें यह भी एक है. वर्ष 1917 में स्थापित यह संग्रहालय दुर्लभ पूरा अवशेषों को संजोये है. विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालय नालंदा महाविहार से प्राप्त पुरावस्तुओं को यहां संजोया गया है. यह संग्रहालय छोटा, लेकिन 100 साल से अधिक पुराना है. यहां जितने पुरावशेष हैं उसकी तुलना में कमरों की संख्या नगण्य है. यहां करीब तेरह हजार पांच सौ पुरावशेष हैं. इनमें से केवल 315 पुरावशेष दर्शकों के लिए विभिन्न चार दीर्घाओं में शो केस तथा पीठिकओ की सहायता से प्रदर्शनी लगायी गयी हैं.

ये वस्तुएं पाषाण, कांस्य, लोहे, कच्ची एवं पक्की मिट्टी से बनी वस्तुएं (टेराकोटा), गच शिल्प (स्टको), हाथी दांत, शंख, लाह एवं प्रस्तर तथा कांस्य निर्मित बहुमूल्य मूर्तियां अभिलेख प्राचीन मृदभांड आदि अनेक पूरावशेष शामिल हैं. नालंदा संग्रहालय के दीर्घा एक में पालयुगीन पांच ऐसे पुरावस्तुएं प्रदर्शित की गयी हैं, जिन्हें प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अतीत को और गहराई से समझने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में देखा जाता है. इनमें पक्की मिट्टी से बने शंख का प्रतिकृति, कांस्य धातु के छल्ले से बना कवच (जिरहबख्तर), कच्ची तथा पक्की मिट्टी से बने मनौती स्तूप, जिसमें संभवतः बौद्ध धर्म से संबंधित मंत्रों एवं सूत्रों से युक्त लिपि, छोटे-छोटे मुहर भरे हैं, जो प्रारंभिक देवनागरी में हैं.

पहले यह पूरा वस्तुएं पुरातत्वविदों एवं इतिहासकारों की नजर से यह ओझल था. अब नालंदा के कई अनछुए पहलुओं पर अनुसंधान के अवसर मिलेंगे.नेशनल म्यूजियम के लिए उपयुक्त नालंदाविश्वविख्यात नालंदा में नेशनल म्यूजियम बनाने की मांग दशकों से उठती रही है. वर्ल्ड क्लास की जगह होते हुए भी संग्रहालय में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. विदेशों से आये अति विशिष्ट जनों ने समय-समय पर विजिट बुक में अपना विचार लिखा है, जिसमें स्थान के मुताबिक संग्रहालय बनाने पर जोर दिया है.

उनका इशारा नेशनल म्यूजियम की ओर जाता है. लेकिन सरकार की उपेक्षा के कारण 100 साल बाद ही यह उतनी ही कमरों का संग्रहालय है जितना 1917 में था.- सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद् होंगे लाइवविश्व संग्रहालय दिवस पर नालंदा संग्रहालय के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद् शंकर शर्मा नालंदा संग्रहालय के इतिहास एवं पुरावस्तुओं के संग्रह को लेकर फेसबुक पर 18 मई को लाइव व्याख्यान देंगे. नालंदा संग्रहालय के संग्रहों के इतिहास, उसके स्रोत एवं साक्ष्य के रूप में कितना महत्व है. इस पर भी विस्तार चर्चा करेंगे. विश्व संग्रहालय दिवस पर संग्रहालय एवं नालंदा विश्व धरोहर परिसर में प्राकृतिक वातावरण को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने के उद्देश्य से पौधारोपण किया जायेगा.

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