Bihar Chunav 2025 : बिहार के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में राज्य की सियासत में एक कयास जरूर लगाया जा रहा है कि अगर महागठबंधन ने एआइएमआइएम की फरियाद को ताक पर रखा तो कोई बड़ी बात नहीं कि ये दोनों दल आपसी समझ विकसित कर लें. यह बात और है कि दोनों ने इस संबंध में खुलकर कोई बात नहीं की है. बता दें कि आइएमआइएम ने भाजपा को सत्ता से बाहर करने महागठबंधन में शामिल होने की गुहार लगा रखी है. फिलहाल ये दोनों ही दल विधानसभा के इतिहास में कमोबेश नये ही हैं.
एआइएमआइएम पिछला विधानसभा चुनाव लड़ चुका है. सियासी जानकारों का कहना है कि इन दलों की हार-जीत पर चर्चा करना अभी जल्द बाजी होगी, लेकिन इस बार के चुनाव में किसी गठबंधन का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं. यूपी से सटे इलाके में बहुजन समाज पार्टी पहले की तरह कुछ सीटों पर पहले की तरह निर्णायक साबित हो सकती है.
बिहार में एआइएमआइएम की बेकरारी और उसके प्रभाव को कुछ यूं समझें
सियासी जानकारों के अनुसार एआइएमआइएम, महागठबंधन के मुख्य घटक दल राजद के वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है. पिछली बार सीमांचल इलाके में पांच सीट जीत कर एआइएमआइएम ने राजद को सकते में डाल दिया था. यूं कहें कि सत्ता से दूर कर दिया था तो गलत नहीं होगा. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि महागठबंधन के कैडर वोट बैंक मुस्लिम मतदाता पर इस पार्टी का पिछले विधानसभा चुनाव में खास असर दिखा था.
इस पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनावों में कुल 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसमें उसे पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी. जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, उन सीटों पर इस पार्टी को 14.28 फीसदी वोट मिला. जबकि इस चुनाव में राज्य में पड़े कुल मतों में इसकी हिस्सेदारी केवल 1.24 फीसदी ही थी. हालांकि इस पार्टी के मुखिया भाजपा के मुखर विरोधी हैं. उन्होंने महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जाहिर की है.
राजद उनकी इच्छा के प्रति उत्साह नहीं दिखाया है,क्यों कि ऐसा करते ही हमेशा के लिए उसका एम-वाय समीकरण में एम फैक्टर यानी मुस्लिम वोट बैंक में एआइएमआइएम की भागीदार स्थापित हो जायेगी. दूसरे , महागठबंधन का अन्य घटक दल कांग्रेस भी नहीं चाहती है कि एआइएमआइएम से तालमेल हो, क्योंकि वह दूसरे राज्यों में अपने को भाजपा के खिलाफ मुस्लिम वोटर को अपना कोर वोटर मान कर भरोसा करती है. महागठबंधन में विशेष रूप से राजद इस पार्टी की धरातल पर ताकत को अभी तौलने में लगा है. राजद और कांग्रेस के लिए एआइएमआइएम गले की हड्डी साबित हो सकता है.
बसपा भी कम नहीं
गठबंधनों से परे पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी भी लड़ी थी. 78 सीटों पर लड़ी इस पार्टी के खाते में केवल एक सीट गयी थी. हालांकि राज्य के कुल वोट बैंक में इसकी हिस्सेदारी 1.49 फीसदी रहा था. जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, वहां इसके वोटों की हिस्सेदारी 4.66 फीसदी रही. एआइएमआइएम और बसपा के संबंध में खास बात यह है कि कि पिछले चुनाव में उसके जीते उम्मीदवार राज्य में सरकार बनते ही सत्ताधारी दलों में शामिल होकर सत्ता का सुख भोगने लगते हैं.
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जनसुराज का होगा लिटमस टेस्ट
जनसुराज के लिए के लिए यह पहला विधानसभा चुनाव होगा. इसका भाजपा और जदयू के शहरी और कस्बाई युवा वोटर्स पर असर हो सकता है. हालांकि इस पार्टी के लिए यह ‘लिटमस’ टेस्ट जैसा होगा. यह दल राज्य की राजनीति में पैर जमाने पूरी ताकत झौंकने की कोशिश में है. इसके शीर्ष नेता जदयू के पूर्व पदाधिकारी हैं.
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बिहार की सत्ता दो दशकों से गठबंधन की राजनीति में फंसी
बिहार के चुनावी दंगल में सियासी पहलवानों के दो खेमे हैं. एक खेमा एनडीए का है. ये करीब 20 सालों से सत्ता पर काबिज है. ये खेमा सत्ता की निरंतरता चाहता है.दूसरा खेमा इंडिया महागठबंधन है. ये सत्ता में वापसी के आस में पूरी ताकत से लगा हुआ है. इसने भी बीच-बीच में सत्ता का स्वाद चखा है. ऐसे में तीसरे खेमे या राजनीतिक दलों के लिए बेहद कम गुंजाईश है. बिहार में गठबंधन राजनीति के हिस्से में 243 सीट में से 237 सीटें हैं. केवल सात सीटें गैर गठबंधन दलों एवं निर्दलीय के खाते में गयी है.
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