अति पिछड़े मुसलमानों की संख्या करीब 67 फीसदी
सियासी जानकारों के अनुसार आने वाले समय में संगठन की प्रांतीय और राष्ट्रीय कार्यकारिणी हो या विधानसभा के प्रत्याशी के चयन की बात हो, इनमें इस बार अति पिछड़ा मुस्लिम को तवज्जो दिया जाना तय माना जा रहा है. राजद की इस रणनीति के पीछे राजद का सियासी अंकगणित है. उसका आकलन है कि बिहार में मुसलमानों में अति पिछड़ा जातियों की संख्या करीब 67 फीसदी है. यह मुसलमानों में ऐसा वर्ग है, जिसके वोट पर अधिकतर मुस्लिम चुनाव जीतते आये हैं. जबकि इसमें इस वर्ग के प्रतिनिधियों की संख्या काफी कम होती है. इस परिदृश्य में सियासी जानकारों का कहना है कि संभव है कि अगड़े वर्ग के मुस्लिम बहुत कम दिखाई दें. अभी राजद में अधिकतर मुस्लिम नेता मुसलमानों में अगड़े समाज के आते हैं.
अपनी इसी रणनीति की दम पर राजद ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की महागठंधन में शामिल करने के आग्रह को खारिज कर दिया है. राजद ने अपने कोर वोटर मुस्लिमों पर भरोसा जताया है. जानकारों का यह भी कहना है कि राजद अपने कोर वोटर में किसी की हिस्सेदारी स्वीकार नहीं करेगी. इसके लिए उसने अपने कोर मुस्लिम वोटर्स में भी अति पिछड़ी जातियों के बीच पैठ बढ़ा दी है. उनकी लीडरशिप को आगे बढ़ाने की कवायद शुरू कर दी है. जिस तरह राजद ने हिंदुओं में अति पिछड़ा मतदाता को रिझाने सारे पैंतरे अपनाये हैं. उसी तरह मुस्लिम वर्ग के अति पिछड़ों को अपनी ओर करने में वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है.
सर्वे निष्कर्स के आधार बना औवेसी का बायकॉट
एआइएमआइएम के आग्रह को खारिज करने के पीछे राजद का एक खास सर्वे भी आधार रहा है. पार्टी ने विभिन्न आधार पर सर्वे करा कर पाया है कि जितनी ताकत से राजद ने वक्फ बिल का विरोध किया है. उतनी ताकत किसी और दल ने नहींं दिखाई. सर्वे में सामने आया है कि एआइएमआइएम को वोट देकर मुस्लिम समाज महागठबंधन को कमजोर करने के पक्ष में नहीं है. सर्वे में साफ हुआ है कि जब भी हिंदू -मुस्लमान का नारा उछाला जायेगा. उसका फायदा राजद को कम भाजपा को अधिक होता है. इसलिए राजद या कांग्रेस , एआइएमआइएम को महागठबंधन में शामिल कर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं करना चाहता है. मुस्लिम वोटर का मूड भांपने के लिए राजद ने सामाजिक स्तर पर और भी कई तरह की एक्सरसाइज की है. बता दें कि राज्य में अति पिछड़ा वर्ग की 112 जातियो में मुस्लिम समाज में 24 जातियां हैं.
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