Bihar Politics: ‘दलितों के नहीं, सबके नेता बनो…’ चिराग पर भड़के जीतनराम मांझी, समझदारी की कमी बताई

Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए के भीतर दलित नेतृत्व को लेकर सियासी तनातनी तेज हो गई है. लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान के खुद को दलितों का हितैषी बताने पर 'हम' अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने पलटवार करते हुए उनकी समझदारी पर सवाल उठा दिए हैं.

By Abhinandan Pandey | July 1, 2025 1:38 PM
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Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, एनडीए के अंदर सियासी खींचतान भी तेज़ होती जा रही है. खासकर एनडीए के दो दलित चेहरे- केंद्रीय मंत्री और लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष तथा केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के बीच सियासी तल्खी अब खुलकर सामने आने लगी है.

चिराग पासवान ने खुद को बताया दलितों का सबसे बड़ा हितैषी

हाल ही में नालंदा जिले के राजगीर में आयोजित बहुजन भीम संकल्प समागम में चिराग पासवान ने खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताते हुए विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि विपक्ष आरक्षण और संविधान को लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यकों को डराने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जब तक वे केंद्र में हैं, तब तक आरक्षण और संविधान को कोई खतरा नहीं है. साथ ही चिराग ने “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” का नारा दोहराते हुए खुद को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और अपने पिता रामविलास पासवान के आदर्शों का सच्चा अनुयायी बताया.

जीतनराम मांझी ने चिराग पर किया कटाक्ष

चिराग की इन बातों पर एनडीए के ही वरिष्ठ नेता जीतनराम मांझी ने तीखी प्रतिक्रिया दी. पटना में पत्रकारों से बातचीत में मांझी ने चिराग पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, “कोई अगर यह कहता है कि वह केवल दलितों के लिए काम करेगा तो यह समझदारी की कमी को दर्शाता है. जो नेता राजनीति में आता है, उसे सिर्फ एक समाज नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए काम करना चाहिए.”

मांझी ने आगे कहा कि राजनीति में अनुभव अहम होता है और किसी एक जाति या वर्ग को केंद्र में रखकर राजनीति करना एकांगी सोच का परिचायक है. साथ ही उन्होंने चिराग के चुनावी दावे पर भी व्यंग्य करते हुए कहा कि “बिहार में तो सभी लोग चुनाव लड़ते हैं, इसमें नया क्या है?”

एनडीए के भीतर अपनी अहमियत जताना चाह रहे मांझी

बिहार की राजनीति में यह बयानबाजी सिर्फ शब्दों का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि उस सियासी जमीन की लड़ाई का संकेत है, जिस पर दलित मतों का बड़ा प्रभाव है. चिराग पासवान जहां अपनी पार्टी को एक नई पहचान देने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं मांझी अनुभव और समावेशी राजनीति की दुहाई देकर एनडीए के भीतर अपनी अहमियत जताना चाह रहे हैं.

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