Jitan Ram Manjhi: बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान बना चुकी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) की कहानी केवल एक राजनीतिक दल के गठन की नहीं, बल्कि एक व्यक्ति की राजनीतिक प्रतिबद्धता, संघर्ष और रणनीतिक संतुलन की भी है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा 2015 में स्थापित यह पार्टी अब अपनी राजनीतिक यात्रा का एक दशक पूरा कर चुकी है. दस वर्षों में इसने न केवल चुनावी मैदान में अपना वजूद बनाए रखा, बल्कि सत्ता के गलियारों में भी अहम स्थान हासिल किया.
नीतीश से दूरी और ‘हम’ की नींव
2014 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ा और महज दो सीटें जीतीं, तब नीतीश कुमार ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने जीतन राम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो उस वक्त जदयू के वरिष्ठ नेता और महादलित समाज से आते थे. 20 मई 2014 को मांझी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
मांझी ने विश्वास मत से पहले क्यों दिया इस्तीफा?
हालांकि मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद मांझी के फैसलों और उनके सख्त रवैये ने जदयू नेतृत्व को असहज कर दिया. संवादहीनता बढ़ती गई और अंततः फरवरी 2015 में राजनीतिक टकराव चरम पर पहुंच गया. नीतीश कुमार ने 130 विधायकों के समर्थन के साथ राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की, जिसके बाद मांझी ने विश्वास मत से पहले इस्तीफा दे दिया. यहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य की नई इबारत लिखनी शुरू की.
8 मई 2015: ‘हम’ की औपचारिक शुरुआत
सत्ता से बाहर होने के बाद जीतन राम मांझी ने आठ मई 2015 को हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) की स्थापना की. यह पार्टी शुरुआत में छोटे स्तर पर दिखी लेकिन बहुत जल्द ही बिहार की दलित राजनीति में एक मजबूत आवाज बनकर उभरी. पार्टी ने खुद को महादलित और वंचित वर्ग की आवाज के तौर पर प्रस्तुत किया.
पिता-पुत्र की जोड़ी: सियासत में साझेदारी
पार्टी की राजनीति में मांझी अकेले नहीं रहे. उनके पुत्र और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष कुमार सुमन ने भी सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया. 2018 में वह बिहार विधान परिषद के सदस्य बने और 2020 में एनडीए सरकार में मंत्री पद की शपथ ली. वर्तमान में वे लघु जल संसाधन मंत्री हैं और पार्टी की रणनीति और संगठन को धार दे रहे हैं.
पार्टी के पास आज चार विधायक
पार्टी के पास आज चार विधायक हैं. दिलचस्प तथ्य यह है कि इनमें से तीन गया जिले से हैं और सभी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से विजयी हुए हैं. पार्टी की ताकत अब एक पारिवारिक राजनीतिक ढांचे में भी बदल चुकी है. जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी, समधन ज्योति देवी और पुत्र संतोष सुमन सभी सत्ता की भूमिका में हैं.
सियासी गठबंधन: कभी इधर, कभी उधर
‘हम’ की राजनीतिक यात्रा गठबंधनों के लिहाज से भी बेहद लचीली रही है. 2015 का विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ लड़ा और एक सीट पर जीत मिली. 2019 के लोकसभा चुनाव में यह पार्टी महागठबंधन में शामिल रही, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर एनडीए का हिस्सा बनी और इस बार चार सीटें जीतीं. 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में मांझी एनडीए उम्मीदवार के तौर पर सफल रहे और अब केंद्र में एमएसएमई मंत्री हैं.
हम का प्रदर्शन: आंकड़ों की जुबानी
- 2015 विधानसभा चुनाव में हम पार्टी 21 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें 01 सीट पर जीत मिली.
- 2020 विधानसभा चुनाव में 07 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें से 04 पर जीत मिली.
- 2019 लोकसभा चुनाव में 03 सीटों पर हम पार्टी ने चुनाव लड़ी और एक भी सीटों पर जीत नहीं मिली.
- वहीं 2024 लोकसभा चुनाव में जीतन राम मांझी की पार्टी एक सीट पर चुनाव लड़ी और जीत दर्ज की.
निष्कर्ष: छोटी पार्टी, बड़ा असर
हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) ने बीते दस वर्षों में यह साबित किया है कि सीमित संसाधनों के बावजूद यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामाजिक समर्थन हो, तो सत्ता में हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सकती है. मांझी ने सत्ता, असहमति और गठबंधनों के बदलते समीकरणों में खुद को प्रासंगिक बनाए रखा और एक ऐसा राजनीतिक ब्रांड तैयार किया जो महज जातीय समीकरण नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व का प्रतीक बन गया है.
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