Bihar Politics: अति पिछड़ी जाति के वोट बैंक में सेंध लगाने ‘नायिका’ गढ़ रहा राजद, क्या है लालू प्रसाद के जिन्न की कहानी

Bihar Politics: अति पिछड़ी जातियों के वोट पाने की जुगत में राजद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने अपने सियासी वर्चस्व वाले दिनों में अति पिछड़ी जातियों के नेताओं को एमएलसी और विभिन्न पद देकर राजनीति की मुख्यधारा में लाया था.

By Rajdev Pandey | July 8, 2025 8:28 PM
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राजदेव पांडेय/ Bihar Politics: विधानसभा चुनाव जीतने के लिए राजद ने इस बार अति पिछड़ी जातियों पर दांव खेला है. इसलिए राजद अपनी पार्टी के अति पिछड़ी जाति के नेताओं को नये अंदाज में उभार रहा है. इस दिशा में उसने गोटियां फिट करना शुरू कर दिया है. इस संदर्भ में दिलचस्प और नया तथ्य यह है कि अति पिछड़ी जातियों में उभारे जा रहे नेतृत्व में महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है. उन्हें इन जातियों में ‘नायिका’ की तरह गढ़ा जा रहा है. राजद के सियासी गलियारे में यह भी कहा जा रहा है कि इस बार अति पिछड़ी जातियों को तुलनात्मक रूप में अधिक सीटें मिलेंगी. हालांकि अभी इसकी तस्वीर साफ नहीं है, क्योंकि अति पिछड़ी जातियों में उसे अति पिछड़ा में जिताऊ उम्मीदवार की तलाश होगी.

दिग्गजों को हाशिये पर रख सियासी मंचों पर दी जा रही ताकत

सियासी जानकारों के अनुसार हालिया राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों में मंच पर अति पिछड़ी जातियों को अधिकतम स्थान मिले. गजब की बात तब देखी गयी जब अति पिछड़ा वर्ग की नोनिया जाति से संबंध रखने वाली अनीता देवी को इन बैठकों की अगली पंक्ति में बिठाया गया. जबकि दिग्गज सांसद प्रेम कुमार गुप्ता , मीसा भारती और संजय यादव दूसरी पंक्ति में देखे गये. सांसद मनोज झा पहली पंक्ति में बैठे जरूर, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं मिला. जबकि अनीता देवी को बोलने का अवसर मिला. अति पिछड़ी जाति की बीमा भारती को भी मंच पर स्थान मिला. नाई जाति की उर्मिला ठाकुर को भी तवज्जो मिली. इस तरह अति पिछड़ी जातियों की महिलाओं को राजद के राजनीतिक मंचों पर खासा अवसर मिल रहा है. इससे पहले राजद ने अपने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर मंगनीलाल मंडल की ताजपोशी अति पिछड़ों को तरजीह देने की सक्रिय शुरुआत मानी जा सकती है. अनिल सहनी को भी आगे लाया जा रहा है.

कैप्टन जय नारायण निषाद को सांसद बनाया

अति पिछड़ी जातियों के वोट पाने की जुगत में राजद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने अपने सियासी वर्चस्व वाले दिनों में अति पिछड़ी जातियों के नेताओं को एमएलसी और विभिन्न पद देकर राजनीति की मुख्यधारा में लाया था. इसमें विद्यासागर निषाद, जंगी सिंह चौधरी बिहार में मंत्री बने. कैप्टन जय नारायण निषाद को सांसद बनाया. इसमें कैप्टन जय नारायण केंद्र में मंत्री भी बने. कुम्हार जाति के हरिशंकर पंडित, लोहार जाति के रामजी शर्मा, रविंद्र तांती, रामकरण पाल, यूनूस लोहिया और बादशाह प्रसाद आजाद शामिल हैं. इसलिए राजद को लगता है कि यही अति पिछड़ी जातियां उन्हें इस बार बिहार की गद्दी पर बिठा सकती हैं. कमोबेश बीस साल का सत्ता का सूखा खत्म करने के लिए उसकी बैचेनी सहज ही समझी जा सकती है.

सियासी समीकरण में अति पिछड़ी जाति के पास है सत्ता की चाबी

बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा वोट बैंक अति पिछड़ी जातियों का है. इस वर्ग के पास 36 प्रतिशत वोट है. पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति में यही वोट बैंक सरकार बनाने के हिसाब से नीतीश कुमार को अपराजेय बनाये हुए है. इसी वोट बैंक में सेंध लगाकर लालू प्रसाद अपनी सत्ता में वापसी सुनिश्चित करना चाहते हैं. यही वजह है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद अपने पुनाने ‘जिन्न’ को अपने सियासी पक्ष में फिर से जिंदा करना चाहते हैं.

क्या है लालू प्रसाद के जिन्न की कहानी

1995 के विधानसभा चुनाव में अति पिछड़ी जातियों के वोट बैंक को लालू प्रसाद ने ‘जिन्न’ कहा. इस संदर्भ में रोचक तथ्य यह है कि 1995 में बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. तब लालू प्रसाद जनता दल के नेता हुआ करते थे. इस चुनाव में उनकी एक नहीं चल रही थी. न इनका कैंपेन हो पा रहा था न वह बूथों पर कोई ताकत दिखा पा रहे थे. यह वह दौर था, जब टीएन शेषन चुनाव आयोग के मुखिया हुआ करते थे. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की उनकी दृढ़ता ने बिहार में अति पिछड़ी जातियों को वोट करने का अवसर प्रदान किया.

चुनाव में लालू प्रसाद को अप्रत्याशित तौर पर जीत दर्ज करायी

राजद के वरिष्ठ प्रवक्ता चितरंजन गगन ने बताया कि लालू प्रसाद के सियासी विरोधियों को लग रहा था कि आयोग की सख्ती की वजह से जनता दल चुनाव हार जायेगा. हुआ एकदम उलटा. इस चुनाव में लालू प्रसाद को अप्रत्याशित तौर पर जीत दर्ज करायी. इसकी वजह उनके पक्ष में अति पिछड़ों की बंफर वोटिंग मानी गयी. लालू प्रसाद के समर्थकों ने इसे ‘जिन्न’ कहा. 324 सदस्यीय अविभाजित बिहार विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 172 के जादुई आंकड़े की तुलना में जनता दल को 167 सीटें मिली. इस ताकत की वजह से लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले जनता दल की सरकार बनी.

बाद में अति पिछड़ी जातियों के वोटर्स नीतीश कुमार के साथ आ गये

बाद के दिनों में अति पिछड़ी जातियों का मोहभंग राजद से होने लगा. अतिपिछड़ी जातियों ने नीतीश कुमार को नई उम्मीदों के रूप में देखा. यही कारण था कि 2000 के चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी राजद की सीटें कम होकर 124 रह गयी. मुश्किल से कांग्रेस, जेएमएम एवं अन्य दलों की सहयोग से सरकार बन पायी. वहीं समता पार्टी को 34 सीटें मिली. 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में राजद को 75 और नवंबर महीने में हुए चुनाव में महज 54 सीटें मिली.

नवंबर 2005 में बन गयी नीतीश सरकार

अति पिछड़ी जातियों की राजद से मोहभंग के कारण जहां राजद और कमजोर होता गया. वहीं नीतीश कुमार की अगुवायी वाला एनडीए मत और विधायकों की संख्या में ताकतवर बनता गया.

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