क्षेत्र में पनपने लगा वामपंथ
वामपंथी राजनीति ने बक्सर में दस्तक दी और 1990 और 1995 में सीपीआई की मंजू प्रकाश ने कांग्रेस को किनारे लगा दिया लेकिन असली राजनीतिक मोड़ 2000 में आया, जब भाजपा ने ब्राह्मण बहुल इस सीट को अपनी रणनीति का केंद्र बनाया. सुखदा पांडेय को मैदान में उतारकर भाजपा ने लगातार तीन चुनाव (2000, 2005, 2010) जीते और कांग्रेस को पूरी तरह पीछे धकेल दिया.
संजय कुमार तिवारी ‘उर्फ’ मुन्ना तिवारी ने करायी वापसी
भाजपा की यह सफलता ब्राह्मण वोट बैंक को साधने और स्थानीय संगठन के मजबूत ताने-बाने का परिणाम थी. मगर राजनीति में कोई गढ़ हमेशा नहीं टिकता. 2015 में कांग्रेस ने जोरदार वापसी की. संजय कुमार उर्फ मुन्ना तिवारी ने भाजपा को शिकस्त दी और 2020 में भी अपनी जीत दोहराई. हालांकि इस बार मुकाबला काफी कड़ा रहा और जीत का अंतर महज 3,892 वोटों का था.
क्या हैं मौजूदा हालात ?
2024 के लोकसभा चुनाव ने इस विधानसभा क्षेत्र की राजनीति को फिर गर्मा दिया है. राजद के सुधाकर सिंह की जीत ने महागठबंधन को नया जोश दिया है. अब 2025 के विधानसभा चुनावों में बक्सर एक बार फिर से सियासी रणभूमि बनने जा रहा है. भाजपा जहां नई रणनीति के तहत ब्राह्मण-यादव समीकरण साधने की कोशिश में है, वहीं कांग्रेस अपने मौजूदा विधायक के प्रदर्शन और संगठन की ताकत के बल पर तीसरी बार जीत दर्ज करने की तैयारी में है. भविष्य में भी कांग्रेस बक्सर में मजबूत नजर आती है, क्योंकि यहां बिहार कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. स्नेहाशीष वर्धन पांडेय ने अपनी मजबूत जमीनी पकड़ बनाई है. वे युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं और रोजगार और नौकरी के मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभाते हैं. संगठन में वे एक प्रभावशाली स्थानीय और प्रदेश की राजनीति में लोकप्रिय चेहरा माने जाते हैं.
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क्या है जातीय समीकरण ?
बक्सर में जातीय समीकरण, उम्मीदवार की छवि और गठबंधन की रणनीति तय करेगी कि इस बार बाज़ी किसके हाथ लगेगी. एक तरफ है भाजपा का संगठन और लंबा अनुभव, दूसरी ओर कांग्रेस की हालिया सफलता और महागठबंधन की लोकसभा में बढ़त. चुनावी घमासान अब अपने चरम की ओर बढ़ रहा है