जाति की भट्ठी में पक रहे हैं विकास के मुद्दे
नीतीश सरकार में मंत्री और भाजपा के वर्तमान विधायक जीवेश कुमार मिश्र के सामने महागठबंधन की ओर से किस पार्टी और कौन सा चेहरा होगा, वो तो अभी तय नहीं है, लेकिन इस बार के चुनाव में जातीय समीकरणों की भट्ठी में मुद्दों की राजनीति पक रही है. पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवॢसटी छात्र संगठन के पूर्व अध्यक्ष डॉ मश्कूर अहमद उस्मानी मैदान में उतरे थे. छात्र राजनीति की उपज दोनों उम्मीदवारों में से वोटरों ने जीवेश को चुना. जीवेश अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से निकले हैं, जबकि डॉ. मश्कूर अलीगढ़ की छात्र राजनीति से.
हर पांच साल पर बदलाव
मतदाताओं ने यहां हर बार चेहरा बदला है. करीब-करीब सभी दलों के लोगों को यहां से मौका मिला. वैसे इस क्षेत्र पर पूर्व रेल मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय कुमार मिश्र एक बार कांग्रेस और दो बार भाजपा के टिकट पर विधायक रहे. वर्ष 2014 में हुए उपचुनाव में ललित बाबू के पौत्र ऋषि मिश्र भी यहां के विधायक हुए. लेकिन, बदले समीकरणों में 2015 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीवेश कुमार मिश्र जीत गए. ऋषि हारकर कांग्रेस में चले गए. इस बार कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया है. ऋषि मिश्र आजकल राजद में हैं.
नदियों की तरह बल खाकर चल रही राजनीति
स्थानीय लोग बताते हैं कि जाले विधानसभा क्षेत्र करीब 40 किलोमीटर के दायरे में फैला है. जब भी चुनाव आता है तो विकास की बात होती है. लेकिन, अंतत: मुद्दे जातीय राजनीति का रंग ले लेते हैं. क्षेत्र में मुस्लिम, ब्राह्मण, वैश्य, भूमिहार और यादव सभी जातियों के वोट हैं. कई जातियां निर्णायक की भूमिका में रहती हैं. लेकिन, इस बार के चुनाव में टिकट बंटवारे से लेकर नदियों की तबाही और विकास के मुद्दे ज्यादा प्रभावी हैं. ऐसे में मुद्दों की राजनीति नदियों की तरह बल खाकर चल रही है.
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