Sarairanjan Vidhan Sabha Chunav 2025: “सरायरंजन में तीन चुनावों से कायम है जेडीयू का दबदबा, 2025 में बदलेगा सियासी समीकरण?”
Sarairanjan Vidhan Sabha Chunav 2025: सरायरंजन में यादव, कुर्मी, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी आबादी है. हर चुनाव में ये जातीय समीकरण बड़ी भूमिका निभाते हैं. जेडीयू को अब तक कुर्मी और कुछ यादव वोटों का समर्थन मिला, जबकि आरजेडी पर परंपरागत मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण का भरोसा रहा है.
By Prashant Tiwari | July 11, 2025 7:00 PM
Sarairanjan Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार की सरायरंजन विधानसभा सीट ने पिछले एक दशक में राज्य की राजनीति के कई रंग देखे हैं, लेकिन एक चीज़ जो इस सीट पर स्थिर रही है वह है जेडीयू और उसके वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी की पकड़. साल 2010 से लेकर 2020 तक हुए तीन विधानसभा चुनावों में इस सीट ने जेडीयू को जिताकर यह संदेश दिया कि क्षेत्रीय विकास और मजबूत नेतृत्व को जनता सराहती है.
2010 विधानसभा चुनाव: विकास बनाम अराजकता
विजेता: विजय कुमार चौधरी (JDU)
वोटों से जीत: लगभग 33,000
मुख्य प्रतिद्वंदी: RJD
चुनाव का प्रमुख मुद्दा: नीतीश सरकार की विकास नीति और कानून-व्यवस्था में सुधार
2010 का चुनाव बिहार में बदलाव की बयार लेकर आया नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने “विकास” को चुनावी मुद्दा बनाया और इसका असर सरायरंजन में भी दिखाई दिया. विजय कुमार चौधरी ने बड़ी जीत दर्ज कर सीट को एनडीए की झोली में डाला. यह उनकी लोकप्रियता और इलाके में काम के प्रति भरोसे का संकेत था.
2015 विधानसभा चुनाव: महागठबंधन का इम्तिहान
विजेता: विजय कुमार चौधरी (JDU)
वोटों से जीत: लगभग 23,000
मुख्य प्रतिद्वंदी: BJP (इस बार जेडीयू महागठबंधन में थी)
चुनाव का प्रमुख मुद्दा: सामाजिक न्याय बनाम सुशासन
2015 में राजनीतिक समीकरण बदले. जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने महागठबंधन बनाकर बीजेपी को टक्कर दी. सरायरंजन में जेडीयू के विजय कुमार चौधरी ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की, लेकिन वोटों का अंतर घट गया. यह इशारा था कि मुकाबला धीरे-धीरे कड़ा होता जा रहा है.
2020 विधानसभा चुनाव: बदलाव की दस्तक या फिर भरोसे की जीत?
विजेता: विजय कुमार चौधरी (JDU)
वोटों से जीत: लगभग 7,000
मुख्य प्रतिद्वंदी: RJD
चुनाव का प्रमुख मुद्दा: स्थानीय विकास बनाम सत्ता विरोधी लहर
2020 का चुनाव नीतीश कुमार की लोकप्रियता में आई गिरावट और सत्ता विरोधी माहौल के बीच लड़ा गया. विपक्ष ने विकास कार्यों में कथित कमी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाया. आरजेडी ने मजबूत प्रत्याशी उतारे और इस बार जेडीयू की जीत का अंतर घटकर मात्र सात हजार रह गया. हालांकि जीत जेडीयू की हुई, लेकिन नतीजे ने यह साफ कर दिया कि जनता बदलाव पर गंभीरता से विचार कर रही है.